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16 फ़रवरी 2015

यहां होती है शिव के अंगूठे की पूजा, इसी अंगूठे पर टिका है माउंट आबू का पहाड़


जोधपुर. माउंट आबू में अचलेश्वर महादेव दुनिया का ऐसा इकलौता मंदिर है जहां पर शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर होने के कारण माउंट आबू को अर्ध काशी के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि इसी अंगूठे पर पूरा माउंट आबू का पहाड़ थमा हुआ है, जिस दिन भगवान शिव के अंगूठे का निशान गायब हो जाएगा, यह पहाड़ भी खत्म हो जाएगा।
यहां होती है शिव के अंगूठे की पूजा, इसी अंगूठे पर टिका है माउंट आबू का पहाड़
मंदिर में बैठे हैं चार टन के नंदी
भगवान शिव के इस मंदिर के दरवाजे से ही पंच धातु से बनी नंदी की एक विशाल प्रतिमा नजर आती है। इसका वजन चार टन है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में शिवलिंग पाताल खंड के रूप में दिखाई देता है, ठीक इसके ऊपर एक तरफ पैर के अंगूठे का निशान बना हुआ है। इस निशान को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है।
कहां पर है यह मंदिर
स्कंद पुराण की माने तो वाराणसी शिव की नगरी है तो माउंट आबू उनकी उपनगरी। अचलेश्वर महादेव राजस्थान के एक मात्र हिल स्टेशन मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर दूर अचलगढ़ की पहाडिय़ों पर स्थित है।
माउंट आबू पर्वत की जगह पर थी ब्रह्म खाई- आज माउंट आबू पर्वत जहां पर है, पौराणिक काल में वहां बहुत बड़ी ब्रह्म खाई थी। इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे। उनकी गाय कामधेनु एक बार हरी घास चरते हुए ब्रह्म खाई में गिर गई। कामधेनु को बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती गंगा को याद किया। इसके बाद सरस्वती गंगा की महिमा से ब्रह्म खाई में जमीन की सतह तक पानी भर गया और कामधेनु गाय गोमुख पर बाहर जमीन पर आ गई।
यहां होती है शिव के अंगूठे की पूजा, इसी अंगूठे पर टिका है माउंट आबू का पहाड़
एक बार फिर खाई में गिरी कामधेनु
कुछ दिनों बाद एक बार फिर कामधेनु खाई में गिर गई। इस पर मुनि ने बार-बार हो रहे इस हादसे को जड़ से खत्म करने के लिए हिमालय पहुंचे और उनसे ब्रह्म खाई को खत्म करने का अनुरोध किया। हिमालय ने उनकी बात सुनकर अपने पुत्र नंदी वर्द्धन को उनके दुख को दूर करने के लिए भेजा।
कैसे बना माउंट आबू पर्वत- नंदी अर्बुद नाग पर उड़ते हुए वशिष्ठ मुनि के आश्रम पहुंचे। दुख दूर करने से पहले नंदी ने वशिष्ठ आश्रम में वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए एवं पहाड़ सबसे सुंदर चाहिए। साथ ही अर्बुद नाग ने वर मांगा कि इस पर्वत का नामकरण उसके नाम से हो। इसके बाद से नंदी व‌र्द्धन आबू पर्वत के नाम से विख्यात हुआ।
यहां होती है शिव के अंगूठे की पूजा, इसी अंगूठे पर टिका है माउंट आबू का पहाड़
महादेव ने बचाई नंदी की जान
वरदान प्राप्त कर नंदी व‌र्द्धन खाई में उतरा तो धंसता ही चला गया, केवल नंदी का नाक एवं ऊपर का हिस्सा जमीन से ऊपर रहा, जो आज आबू पर्वत है। वह चल नहीं रह पा रहा था, तब वशिष्ठ के निवेदन पर महादेव ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे पसार कर इसे स्थिर किया यानी अचल कर दिया तभी यह अचलगढ़ कहलाया।
रहस्य से भरा है अंगूठे के नीचे का पाताल खंड- भगवान शिव के अंगूठे के निशान आज भी वहां दिखाई पड़ते हैं। अचलेश्वर महादेव के रूप में महादेव के अंगूठे की पूजा-अर्चना की जाती है। इस अंगूठे के नीचे बने प्राकृतिक पाताल खड्डे में कितना भी पानी डालने पर खाई पानी से नहीं भरती। इसमें चढ़ाया जानेवाला पानी कहा जाता है यह आज भी एक रहस्य है
मंदिर में बना है सुंदर धर्मकांटा- मंदिर के बायीं तरफ दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा बना हुआ है। इस पर की गई कलाकृति देखते ही बनती है। ऐसा माना जाता है कि यहां के राजा अपने राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे अपनी प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे।
यहां होती है शिव के अंगूठे की पूजा, इसी अंगूठे पर टिका है माउंट आबू का पहाड़
अचलेश्वर महादेव मंदिर के परिसर में द्वारिकाधीश जी का मंदिर भी बना हुआ है। गर्भगृह के बाहर वाराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। इस परिसर के विशाल चौक में चंपा का विशाल पेड़ है जो अपनी प्राचीनता को दर्शाता है।

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