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08 जनवरी 2015

अरबों का कारोबार छोड़कर आया भारत, Multi-Millionaire से बना संत




चंडीगढ़. 'जिंदगी का सबसे बेहतरीन अनुभव था भगवान की खोज। इस खोज के लिए ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के अपने बिजनेस को छोड़ भारत आया। कई साल पर्वतों में बिताए, गहरी साधना की, हिमालय की चोटी और जंगलों में कई महीने बिताए। भगवान मिला पर कहीं बाहर नहीं अपने अंदर ही है। यह सं‌भव हुआ मेडिटेशन से।
अरबों का कारोबार छोड़कर आया भारत, Multi-Millionaire से बना संत
 
मोह त्याग कर बने संत
स्वामी जी ने बताया कि मेडिटेशन से ही मुझे खुद का ज्ञान हुआ। अब मुझे किसी चीज को खोने का डर नहीं है और न ही किसी चीज को पाने की इच्छा। मुझे प्रेम और माेह में अंतर ज्ञात हुआ। मैं सभी से प्रेम करने लगा, मोह मेरे अंदर रहा ही नहीं। मैंने सत्य को जाना है और अपनी किताब में उसी सत्य की बात की। इसीलिए इस किताब का नाम इफ ट्रुथ टू बी टोल्ड रखा।'
 
ऑस्ट्रेलिया के मल्टी मिलिनियर थे स्वामी 
पटियाला के रहने वाले ओम ने वीरवार अपनी बायोग्राफी को चंडीगढ़ प्रेस क्लब में रिलीज किया। उनसे बातचीत हुई तो उन्होंने कहा ‘मैं बचपन से ही वेदों और मेडिटेशन में दिलचस्पी रखने लगा था। 18 साल की उम्र में पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया गया। एमबीए करने के बाद वहीं कुछ साल जॉब की और फिर कुछ साल बाद खुद का बिजनेस। लेकिन इस दौरान लगा कि जिंदगी का मकसद कुछ और है। बिजनेस काफी अच्छा चल रहा था। ऑस्ट्रेलिया का मल्टी मिलिनियर बन गया, ऐशोआराम की सभी चीजें थीं, बंगला, पोर्श कार सब कुछ लेकिन फिर भी एक बेचैनी सी रहती थी। आखिरकार फैसला किया की भगवान की खोज में वापस भारत जाऊंगा। साल 2007 में अपना बिजनेस पार्टनर को सौंप कर वापिस भारत आया।
 
गुरु ने दीक्षा देने से किया था मना
वाराणसी में जाकर वहां गुरु नागा संत से मिला। उन्होंने पहले मुझे दीक्षा देने से मना किया। उन्होंने कहा कि पहले अपने घरवालों से बात करवाओ क्योंकि ऐसी भक्ति के लिए परिवार को ही पहले त्यागना पड़ता है। मां उस वक्त कैनेडा में थी। उनकी गुरु जी से फोन पर बात कराई। मां के स्वीकार करने के बाद गुरु ने मुझे दीक्षा दी। गुरु के आश्रम से निकल कर फिर हिमालय की वादियों में चला गया। यहां जंगल और पहाड़ों में अकेला रहकर मेडिटेशन किया। उसके बाद ही खुद को जान पाया। आजकल सोलन में खुद का एक आश्रम है, जिसमें ज्यादातर एकांत में ही जीवन बिताता हूं।’ बायोग्राफी लिखने का मन कैसे हुआ? के जवाब में स्वामी ने कहा कि साल 2012 में मेरे आश्रम में एक युवक आया। उसको लगा की मेरी जिंदगी कई लोगों के लिए प्रेरणा बन सकती है। पहले तो मना कर दिया लेकिन उसके बार बार आग्रह करने पर किताब लिख दी।’ इफ ट्रुथ टू बी टोल्ड चंडीगढ़ के बुक सेंटर पर उपलब्ध है, इसकी कीमत 499 रुपए है।
 
हरमन हैस की सिद्धार्थ पसंद है 
वेदों और अध्यात्म से जुड़ी किताबों के अलावा साहित्य से जुड़ी कुछ किताबें पढ़ता हूं। सबसे पसंदीदा किताब हरमन हैस की सिद्धार्थ लगी। अभी तक कुल 7 किताबें लिख चुका हूं, इनको जल्द ही रिलीज करुंगा।

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