नामपेन्ह। कंबोडिया में मकड़ियों का एक बड़ा बाजार है। यहां के
लोग घने जंगलों में जहरीली मकड़ियों की तलाश में रोजाना घंटों बिता देते
हैं। जिसके बाद वो इन्हें रेस्टोरेंट और बाजारों में बेचते हैं। वहीं,
स्थानीय ग्राहकों से इन्हें हर जहरीली मकड़ी के बदले 8 रुपए मिलते हैं।
खाने और पारपंरिक दवाओं के लिए जहरीली मकड़ियों की तलाश का ये काम कंबोडिया
में कई पीढ़ियों से चला आ रहा है। यहां मकड़ी खाने की शुरुआत मजबूरी में
हुई थी, लेकिन अब ये पसंदीदा डिशेज में से एक है।
हालांकि, यहां मकड़ी खाने की शुरुआत 1970 के दशक से हुई, जब खमेर रूज
शासन में हुए नरसंहार के चलते भुखमरी के हालात बन गए थे और इंसान के पास
जीने के लिए इसके अलावा ज्यादा कोई विकल्प मौजूद नहीं थे। सजाएं, जरूरत से
ज्यादा काम और भुखमरी ने 1975 से 1979 के दौरान 20 लाख से ज्यादा लोगों की
जान ले ली थी। इस भयानक इतिहास के बावजूद लोग मकड़ी को लजीज पकवान मानते
हैं।
कंबोडिया के किसी भी मार्केट और रेस्टोरेंट ये आसानी से मिल जाएगा।
थाईलैंड, पापुआ न्यू गिनी समेत भारत और वेनेजुएला के भी कुछ हिस्सों में
मकड़ी खाई जाती है, लेकिन कंबोडिया में दूर-दूर तक इसकी लोकप्रियता बहुत ही
खास है। इसमें अच्छी मात्रा में प्रोटीन, फोलिक एसिड और जिंक मौजूद होता
है, इसीलिए इन्हें औषधीय गुणों वाला माना जाता है।
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