किसी भी परीक्षा में माइनस मार्किंग के नाम पर भारी घोटाले रोज़ की बात हो
गए है ,,ज़रा सोचिये एक छात्र छात्र सो में से अस्सी सवाल सही करते है और
बीस सवाल गलत हो जाने पर उनके नंबर दूसरे डफर छात्र छात्राएं जिन्होें सवाल
ही चालीस किये है उनसे भी कम हो जाते है और इंटेलिजेंट बच्चो के स्थान अपर
गधे पंजीरी खाते है फिर माइनस मार्किंग में सवालों के जवाब की संख्या के
बाद दुबारा से रिचेकिंग का सवाल नहीं होता इसलिए बेईमानी की सम्भावनाये
ज़्यादा होती है ,,मेडिकल ,,,आई आई टी और दूसरे मामलों में माइनस मार्किंग
के कारण कई प्रतिभावान बच्चे रुक जाते है जबकि डफर बच्चे पास हो जाते है और
फिर अराजकता के हालात होते है ,, सरकार को सवाल गलत होने पर माइनस
मार्किंग की परिपाटी का घोटाला रोकना होगा ताकि बच्चों को इंसाफ मिल सके
,,अख्तर
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
02 जनवरी 2015
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श्रीमान , आपका नजरिया सहीं नहीं लगा. पंजीरी वे ही खा पाते हैं जिनने अपने आप पर भरोसा कर 40 सवाल सही किए न कि 80 सही करने के बाद वचे 20 में तुक्के मारे. इन परीक्षाओं में अपने आप पर यकीन की विशेषता होती है. तुक्कों पर नहीं. यदि भरोसा कर 80 सही जवाूब ही दिए होते तो पंजीरी वे ही खाते. सही तरीकों की इसतरह से आलोचना एक गंभीर मामला है.
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