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18 जनवरी 2015

अकबर को धूल चटाने वाले राणा प्रताप ने इस गुफा में खाई थीं घास की रोटियां




उदयपुर. राजस्थान की भूमि सदा से ही महापुरुषों और वीरों की भूमि रही है। यह धरती हमेशा से ही अपने वीर सपूतों पर गर्व करती रही है। उन्हीं वीरों में से एक थे महाराणा प्रताप। आज उनका पुण्यतिथि है इस अवसर पर dainikbhaskar.com आपको बता रहा है उस गुफा के बारे में बता रहा है जहां अकबर को धूल चटाने वाले वीर योद्धा महाराणा प्रताप ने घास की रोटियां खाकर कुछ दिन बिताए थे। यह वो प्रतापी विरासत है जिसे प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था। आईए जानते हैं इस गुफा की कहानी।
अकबर को धूल चटाने वाले राणा प्रताप ने इस गुफा में खाई थीं घास की रोटियां
 
हम बात कर रहे हैं मेवाड़ की विरासतों में शुमार मायरा की गुफा के बारे में। प्रकृति ने इस दोहरी कंदरा को कुछ इस तरह गढ़ा है मानो शरीर में नसें। इस गुफा में प्रवेश के तीन रास्ते हैं, जो किसी भूल-भुलैया से कम नहीं। इसकी खासियत यह भी है कि बाहर से देखने में इसके रास्ते का द्वार किसी पत्थर के टीले की तरह दिखाई पड़ता है। लेकिन जैसे-जैसे हम अंदर जाते हैं रास्ता भी निकलता जाता हैं। यही कारण है कि यह अभी तक हर तरफ से सुरक्षित है। यही तो कारण था कि महाराणा प्रताप ने इसे अपना शस्त्रागार बनाया था।

दरअसल, जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ उस समय दिल्ली पर सम्राट अकबर का शासन था। वह सभी राजा-महाराजाओं को अपने आधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था। वहीं, मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा। अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं तो आधे हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर कि रहेगी। जवाब में प्रताप ने कहा था कि स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा, लेकिन अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा।

हल्दी घाटी में अकबर और प्रताप के बीच हुए युद्ध के दौरान इसी गुफा को प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था। यह युद्ध आज भी पूरे विश्व के लिए एक मिसाल है। इसका पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस युद्ध में अकबर के 85 हजार और प्रताप के केवल 20 हजार सैनिक थे। इसके बावजूद प्रताप ने अकबर को धूल चटा दिया था। प्रताप का पराक्रम ऐसा था कि उनकी मृत्यु पर उनकी बहादुरी को याद कर अकबर भी रो पड़ा था।

हालांकि, प्रताप की जीत में उनके घोड़े का भी अहम योगदान था। एक पांव चोटिल होने के बाद भी प्रताप को पीठ पर लिए वह नाले को पार कर गया, लेकिन मुगल सैनिक उसे पार न कर सके। हल्दी घाटी के युद्ध की याद दिलाती यह गुफा इतनी बड़ी है कि इसके अंदर घोड़ो को बांधने वाली अश्वशाला और रसोई घर भी है। इस गुफा के अंदर वही अश्वशाला है जहां चेतक को बांधा जाता था, इसलिए यह जगह आज भी पूजा जाता है। पास ही मां हिंगलाज का स्थान है। प्रकृति और इतिहास की यह विरासत अरसे से अनदेखी का शिकार है।

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