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19 दिसंबर 2014

एक सुंदर रानी की कहानी, जिसके इस धोखे ने पति को बना दिया साधु

उज्जैन। उज्जैन के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य के भाई का नाम राजा भतृहरी था। किसी समय में राजा भर्तृहरि बहुत ज्ञानी राजा थे, लेकिन वे दो पत्नियां होने के बावजूद भी पिंगला नाम की अति सुंदर राजकुमारी पर मोहित  गए। राजा ने पिंगला को तीसरी पत्नी बनाया। पिंगला के रूप-रंग पर आसक्त राजा विलासी हो गए। वे पिंगला के मोह में उसकी हर बात को मानते और उसके इशारों पर काम करने लगे। पिंगला इसका फायदा उठाकर व्यभिचारिणी हो गई।
 
वह घुड़साल के रखवाले से ही प्रेम करने लगी। उस पर मोहित राजा इस बात और पिंगला के बनावटी प्रेम को जान ही नहीं पाए। जब छोटे भाई विक्रमादित्य को यह बात मालूम हुई और उन्होंने बड़े भाई के सामने इसे जाहिर किया, तब भी राजा ने पिंगला की चालाकी भरी बातों पर भरोसा कर विक्रमादित्य के चरित्र को ही गलत मान राज्य से निकाल दिया।

बरसों बाद पिंगला की चरित्रहीनता तब उजागर हुई, जब एक तपस्वी ब्राह्मण ने घोर तपस्या से देवताओं से वरदान में मिला अमर फल (जिसे खाने वाला अमर हो जाता है) राजा को भेंट किया। राजा पिंगला पर इतना मोहित था कि उसने वह फल उसे दे दिया, ताकि वह फल खाकर हमेशा जवान और अमर रहे और राजा उसके साथ रह सके।

उसे प्यार कर सके। पिंगला ने वह फल घुड़साल के रखवाले को दे दिया। उस रखवाले ने उस वेश्या को दे दिया, जिससे वह प्रेम करता था। वेश्या यह सोचकर कि इस अमर फल को खाने से जिंदगी भर वह पाप कर्म में डूबी रहेगी, राजा को यह कहकर भेंट करने लगी कि आपके अमर होने से प्रजा भी लंबे वक्त तक सुखी रहेगी।

पिंगला को दिए उस फल को वेश्या के पास देख राजा भर्तृहरि के होश उड़ गए। उनको भाई की बातें और पिंगला का विश्वासघात समझ में आ गया। राजा भर्तृहरि की आंखें खुलीं और पिंगला के लिए घृणा भी जागी। फिर भी पिंगला व उस रखवाले को सजा न देकर वे स्त्री और संसार को लेकर विरक्त हो गए। फौरन सारा राज-पाट छोड़ दिया। आत्मज्ञान की स्थिति में राजा भर्तृहरि ने भर्तृहरि शतक ग्रंथ में समाए श्रृंगार शतक के जरिए सौंदर्य खास तौर पर स्त्री सौंदर्य से जुड़ी वे बातें कहीं, जिनको कोई मनुष्य नकार नहीं सकता
स्मितेन भावेन च लज्जया भिया
परांमुखैरद्र्ध कटाक्ष वीक्षणै:।
वचोभिरीष्र्या कलहेन लीलया।
समस्त भावै: खलु बन्धानं स्त्रिय:।।

सरल शब्दों में मतलब है कि स्त्री की मोहित करने वाली हल्की हंसी, शरमाना, शिकायत के भाव से नजरें फेरना, मीठे बोल या फिर तानों से भरी बात व तरह-तरह के हाव-भाव किसी भी सांसारिक व्यक्ति को बंधन में बांध देते हैं या मोह जाल में फंसा लेते हैं।

स्मितं किंचिद्वक्त्रे सरलतरलो दृष्टविभव:
परिस्पन्दो वाचामभिनवविलासोक्ति सरस:।
गतानामारम्भ: किसलयितलीलापरिकर:
स्पृशन्त्यस्तारुण्यं किमिह न हि रम्यं मृगदृश:।।

 
यानी नवयुवतियों के हर अंग से ही सौंदर्य झलकता है। मसलन चांद से चेहरे पर मंद मुस्कान, सरल, कुदरती और चंचल नजर, खुलकर, हाव-भाव व इशारों के साथ बातचीत करना, सधी चाल-ढाल आदि में सुंदरता समाई होती है।
 
 

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