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10 दिसंबर 2014

दोस्तों कहावत है रस्सी जल गयी ,,लेकिन बल नहीं निकला

दोस्तों कहावत है रस्सी जल गयी ,,लेकिन बल नहीं निकला वही कहावत कांग्रेस के साथ आज भी क्रियान्वित हो रही है ,,,कांग्रेस का साम्राज्य देश भर में कोंग्रेसियों की काली करतूतों के कारण ज़मीन में दफन होने लगा है ,,,कांग्रेस पहले केंद्र से फिर राज्यों से अब निकायों से निपट गयी है ,,,इन सब के पीछे कांग्रेस हाईकमान के दरबारियों की चापलूसी ,,चमचागिरी और गलत रिपोर्टिंग तो है ही लेकिन हाईकमान भी बच्चा नहीं है उसे इन हालातों में कुछ बदलाव लाना चाहिए लेकिन वही राजसी ठाठ बाट वाली स्थिति बनी हुई है ,,,,,दिल्ली के राष्ट्रिय कार्यालय 24 अकबर रोड जहां पैर रखने की जगह नहीं हुआ करती थी वहा आज मरघट सी खामोशी ,,तबाही और बर्बादी का सन्नाटा है ,,,,कांग्रेस कार्यालय की केन्टीन वाले जिनकी बिक्री आसमान पर थी आज ज़ीरो पर आ गयी है ,,,,वहां का वही घटिया निज़ाम अव्वल तो राष्ट्रीय स्तर के नेता पार्टी कार्यालय में नहीं आते और जो आते है अधिकतम उनकी पहली तरजीह महिला कार्यकर्ता होती है ,,वही अंग्रेज़ों जैसा हाल बंद दरवाज़े ,,,पर्ची दो इजाज़त लो फिर मिलो यह तो इन प्यादों के हाल है जो हाईकमान के आगे कुत्ते की तरह दुम हिलाते देखे जाते है ,,कार्यकर्ता जो सैकड़ों हज़ारों मील दूर से आता है वोह फ्रस्ट्रेट हो जाता है परेशान हो जाता है उनका नेता उनसे मिलता नहीं नखरे करता है सुनवाई का कोई जनता दरबार नहीं आम कार्यकर्ता तो दूर बढ़े बढ़े शीर्ष स्तर के नेता इन कथित ठेकेदारो को गालिया बकते हुए नज़र आते है क्योंकि इनकी उपेक्षा इनका आचरण बर्दाश्त के बाहर है ,,,यही लाठ साहबी अंदाज़ दस जनपथ और तुगलं लेन रोड पर देखने को मिलता है ,,,,हज़ारो मील दुर से किसी राजय का मंत्री ,,किसी कांग्रेस प्रदेश इकाई का पदाधिकारी ,,विधायक ,,सांसद आत्ता है और लाठसाहबों के सुरक्षाकर्मी उसे अंदर तक नहीं जाने देते ,,,,,क्या फ़र्क़ पढ़ता है अगर यह लोग एक दो मिनट दूर दराज़ से आये लोगों के लिए निकाल ले इनसे तरीके से बात कर ले ,,लेकिन कांग्रेस में यह लाठ साहबी संस्कृति ने कांग्रेस को डुबो तो दिया है ,,इन लोगों के दफ्तर चेंबर में एक बार जो गया और जिसमे ज़मीर ज़िंदा है तो वोह तो फिर इनसे मिलना कभी पसंद ही नहीं करेगा ,,,यही वजह है के अब केंद्र से लेकर राज्यों और निकायों तक कांग्रेस दम तोड़ रही है और मुर्दाबाद खुद इनके कार्यकर्ताओं में होने लगी है बात कड़वी है लेकिन सच्ची है ,,चमचा कार्यकर्ता इसको समझता है महसूस करता है लेकिन डर के मारे कहने की हिम्मत नहीं करता ,,चिट्ठियां लिखता है लेकिन उन्हें कचरापात्र में डाला जाता है ,,सभी परेशान कार्यकर्ता सोचते है बिल्ली के गले में कोन घंटी बंधे तो लो जनाब यह खतरनाक कम यह सच बोलने और लिखने का काम में शुरू करता हु ताके कांग्रेस के लाठ साहब फिर से ज़मीन के लोग सेवक लोग बनकर कार्यकर्ताओं की सुने उन्हें विश्वास में ले उनका सम्मान करे और देश भर में फिर से कांग्रेस मुर्दाबाद से ज़िंदाबाद हो सके ,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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