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10 दिसंबर 2014

कितने घरों में स्वेटर बुनने वाली सलाइयां बची हैं

कितने घरों में स्वेटर बुनने वाली सलाइयां बची हैं??,,मेरी साहित्यकार बहन वंदना अवस्थी दुबे के इस सवाल ने मुझे झकझोर कर रख दिया और घरों के झरोखों से अंदर झाँकने पर मजबूर किया ,,,बात सही है घरो में आज बेअदब महिलाओं की वजह से ना तो प्यार है ,,ना सुई है ,,ना डोरा है ,,ना सिलाई मशीन है ,,घरों में बीवियों के हाथ का खाना बहुत कम है ,,बाइयों के हाथ की रोटी ,,,उनके हाथ की सफाई ,,धोबियों की धुलाई प्रेस ,,,,सालगिरह और दूसरी खुशियों के मौके पर होटलों का खाना ,,,,,,महमाँनवाज़ी में होटलों का खाना ,,,,खुशनसीब है वोह लोग जिस घर में आज भी दिया सलाई है ,, सिलाई मशीन है ,,सुई डोरा है ,,स्वेटर बुनने की सलाईया है ,,,अच्छे अच्छे व्यंजन बनाने वाली लुगाइयाँ है ,,,,,अभी कल ही मेरे भाई भरत शर्मा ने एक स्वेटर पहन कर बढ़े गर्व से कहा था के मुझे प्यार मिला और मेरा स्वेटर बन गया ,,,काश ऐसा प्यार सभी को मिले ,,,,,,क्या ही अच्छा हो के हमारे घरो में फिर से प्यार फिर से संस्कृति लोटे ,,,,घरों में किट्टी पार्टी की जगह ,,,टी वी चैनलों की जगह ,,,सास बहुओं की किट किट और नौकरानियों की गुलामी की जगह फिर से आज़ादी और ,,,प्यार हो ,,अपनापन हो ,,,,,घर के बनाये हुए व्यंजन हो ,,बीवी ,,माँ ,,बहन के हाथों के बने हुए स्वेटर हो ,,अम्मी के बीवी के हाथो सिला पायजामा हो ,,क्या फिर से वोह प्यार लोट पायेगा इन आज़ाद संस्कृति की महिलाओं में जहा सिर्फ रुमाल से चेहरा ढ़क कर महिलाये टाइट कपड़े ,,कम कपड़े पहन कर ,,महंगे कपड़े पहनकर समझने लगी है के उन्होंने इस रुमाल से चेहरा ढक कर अपने सारे ऐब ढक लिए है ,,,इस में महिला अकेली ज़िम्मेदार नहीं इस पाप में पुरुष भी बराबर का सांझीदार और ज़िम्मेदार है ,,,,,,,वोह कमज़ोर हो गया है ,,बेहया हो गया है माँ से ज़्यादा बीवी का हो गया है ,,,बीवी से ज़्यादा किसी और का हो गया है और इसीलिए ब्लेकमेल होकर यह सब सह रहा है जब वोह प्यार नहीं देता तो फिर महिला उसके लिए क्यों स्वेटर बनेगी ,,क्यों वयंजन बनाकर उसका इन्तिज़ार करेगी ,,क्यों पति को परमेश्वर मानकर उसके खाना खाए बगैर भूखी रहेगी ,,,क्यो पति उसके माँ बाप रिश्तेदारो को पतिपरमेश्वर के रिश्तेदार होने से उन्हें देवता समझ कर उनकी पूजा कर घर को मंदिर इबादत घर बनाएगी ,,क्यों आखिर क्यों ,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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