श्रीनगर। कश्मीर
रियासत के भारत में विलय प्रस्ताव पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर
लाल नेहरू द्वारा लगाए गए पेंच के बाद यहां के हालात बिगड़ना शुरु हो गए
थे। महाराजा हरिसिंह की रियासत में पाकिस्तानी सैनिक कबाइलियों के वेश में
यहां घुस आए थे। हिंदुओं को मारा जा रहा था। अंग्रेज दोहरी नीति अपना रहे
थे। माउंटबेटन और गांधीजी चाहते थे कि पाकिस्तान के साथ कश्मीर का विलय हो
जाए। बदले हालात में अंग्रेज सरकार इस कोशिश में लगी थी कि किसी भी हालत
में कम से कम कश्मीर का गिलगित तो पाकिस्तान से मिल जाए तो वह वहां से अपनी
भविष्य की सैन्य गतिविधियां संचालित कर सके। इसमें वह कामयाब भी हो गए।
गिलगित को जब पाकिस्तान का हिस्सा घोषित किया गया तो पाकिस्तान की सरकार को
भी नहीं मालूम था गिलगित उसका हो गया है। हकीकत में गिलगित को अंग्रेज
सैनिकों की एक टुकड़ी ने वहां के शासक को बंदी बना पूरी सेना को मार कर
पाकिस्तान का झंड़ा फहरा दिया था।
माउंटबेटन रच रहे थो साजिश...
कश्मीर रियासत का 1947 में भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया
गया। यहां की जनता भी भारत के विलय की पक्षधर थी। माउंटबेटन चाहते थे कि
विलय से पहले यहां पर जनमत संग्रह कराया जाए। महात्मा गांधी की भी यही मंशा
थी की कश्मीर में मुस्लिमों की संख्या अधिक है इसलिए इसे पाकिस्तान का
हिस्सा बनना चाहिए। माउंटबेटन मन ही मन कई तरह के षड्यंत्र रच रहे थे।
भविष्य की योजना पर वह काम कर रहे थे। उन्हें पूरा भरोसा था कि कश्मीर
पाकिस्तान से मिल जाएगा। ब्रिटिश सरकार की गुप्त योजना को किसी भी हालत में
अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी माउंटबेटन के ऊपर ही थी। वह चाहते की जल्दी
से जल्दी जम्मू-कश्मीर में जारी युद्ध खत्म हो जाए और वह अपनी कार्य योजना को आगे बड़ा सकें।
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