आपका-अख्तर खान

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27 दिसंबर 2014

में न प्यार समझता

तुम मुझे ना मिलती
तो कैसा होता
में न जज़्बात समझता
में न प्यार समझता
में न विरह की तड़पन महसूस करता
में न दीवानगी समझता
मेरा दिल तुम्हारे लिए ना धड़कता
मेरे अहसास तुम्हारे लिए नहीं होते
मेरे रोम रोम में तुम न होती
मेरे दिल ,दिमाग में अलफ़ाज़ नहीं निकलते
तो फिर
में फेसबुक पर कुछ नहीं लिखता
में शायर नहीं होता
में अतुकांत कवि नहीं होता
में अकेला तो होता लेकिन में जैसा बना हूँ ऐसा नहीं होता
इसीलिए कहता हूँ
मेरी होने के लिए शुक्रिया ,,,अख्तर

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