में सोचता था
इसी साल में
तुमसे मिल लूंगा
मिला भी
देखा भी
बातें भी की
वायदे भी हुए
लेकिन फिर भी
देखो
साल निकला जा रहा है
इधर आप है के
बस चक्कर पे चक्कर
दिए जा रहे है ,,
कहीं यह साल
खुशियों की चाहत का होने पर भी
तुम्हारे बगैर
तुमसे मिलन के बगैर
सूना सूना ,,सुखा सुखा
ना बीत जाए
इसीलिए कहता हूँ
दो दिन बचे है
तीन दिन बचे है
चले आओ ,,चले आओ ,,अख्तर
इसी साल में
तुमसे मिल लूंगा
मिला भी
देखा भी
बातें भी की
वायदे भी हुए
लेकिन फिर भी
देखो
साल निकला जा रहा है
इधर आप है के
बस चक्कर पे चक्कर
दिए जा रहे है ,,
कहीं यह साल
खुशियों की चाहत का होने पर भी
तुम्हारे बगैर
तुमसे मिलन के बगैर
सूना सूना ,,सुखा सुखा
ना बीत जाए
इसीलिए कहता हूँ
दो दिन बचे है
तीन दिन बचे है
चले आओ ,,चले आओ ,,अख्तर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)