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27 नवंबर 2014

सात फेरों से नहीं रामपाल के आशिर्वाद से होती थीं शादियां, पढ़ें 'पंथ' के नियम

(गांव में घर की दीवार में चिपकाई गई रामपाल की तस्वीर। जिसके आगे सिर्फ एक दीपक भर जलाया जाता है।)
 
बमोरी-गुना. आदिवासी बहुल गांव डिगडोली में कई ऐसे लोग हैं, जो आपके परंपरागत अभिवादन राम-राम या नमस्ते का जवाब ‘सत्य साहेब’ कहकर देंगे। यह वे लोग हैं जो हरियाणा के कथित संत रामपाल की अध्यात्मिक दुनिया की नागरिकता ग्रहण कर चुके हैं। बमोरी जैसे पिछड़े इलाके में एक दर्जन से ज्यादा गांवों में रामपाल के भक्त फैले हुए हैं। इनमें ज्यादातर वे लोग हैं जो समाज, जाति और धर्म के हाशिए पर पड़े हुए हैं। 
 
मढ़ीखेडा, साजरवाले, करमदी, डिगडोली, डोगर, चाकरी, डोंगरी सहित तमाम ऐसे गांवों में दर्जनों परिवार रामपाल पंथ अपना चुके हैं। हाल के घटनाक्रम के बाद तमाम लोग डरे हुए हैं। उन्हें लगता है कि पुलिस रामपाल के तमाम भक्तों को पकड़कर जेल में बंद कर देगी। कई का बाबा से मोहभंग हो गया है। दूसरी और ऐसे लोग भी हैं, जो मानते हैं कि अगर बाबा सच्चे हैं तो उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। 
 
‘पंथ’ के अध्यात्मिक नियम 
 
> प्रतीक : हर किसी के पास कबीर और रामपाल की तस्वीर होती है। उनके अलावा किसी और देवी-देवता की घर में जगह नहीं होती। 
 
> पूजा : न कोई भजन, न आरती, न कोई कर्मकांड। सिर्फ एक माला दी जाती है, जिसे दिन में  108 बार जपना है।  अगरबत्ती नहीं जलाई जाती। हां शुद्ध घी का दीया जलाया जा सकता है। भक्त को बीड़ी, तंबाकू या किसी अन्य नशे से दूर रहना जरूरी है। 
 
> शादी : न फेरे, न बारात न वरमाला। जोड़ों को बाबा रामपाल खुद अपने आश्रम में बुलाकर आशीष देते हैं और शादी हो जाती है। शादी में होने वाले संभावित खर्च को आश्रम में दान के रूप में जमा करा लिया जाता है। 
 
> सामाजिक दायरा : रामपाल का आदेश है उनका भक्त किसी के संपर्क में नहीं रहेगा। न किसी की शादी में जाएगा न मृत्यु संस्कार में शामिल होगा।
 
थम गया पंथ का विस्तार : हालांकि इन घटनाओं के कारण कथित पंथ के विस्तार की प्रक्रिया रुक गई है। साजरवाले गांव में यह खुलासा हुआ कि यहां से कई परिवार रामपाल के आश्रम में जाने की तैयारी कर रहे थे। रामपाल संत के दो-तीन भक्त परिवारों ने सभी को अपने प्रभाव में ले लिया था। इसी दौरान रामपाल की सल्तनत ढह गई।  
 
बमोरी के कई गांवों में फैले हैं रामपाल अनुयायी
 
रामपाल के आश्रम में भक्तों को बकायदा रजिस्ट्रेशन फॉर्म इश्यू किया जाता था। ऐसा ही फॉर्म दिखाते हुए उनका एक भक्त। घर की दीवार पर रामपाल का चित्र भी टंगा हुआ है। बीच में रामपाल हैं और चारों ओर भक्तियुग के कवि, जिनमें कबीर प्रमुख हैं। तस्वीर के आगे सिर्फ एक दीपक भर जलाया जाता है।
 
नेटवर्किंग मार्केटिंग 

रामपाल ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए नेटवर्किंग कंपनियों वाला तरीका अपनाया। हर भक्त को कम से कम दो और भक्तों को जोड़ना होता है। नए भक्तों को शुरुआत में हर माह कम से कम एक बार आश्रम में जाना होता है। यह सिलसिला चार माह तक चलता है। इसके बाद उसका बाकायदा ‘रजिस्ट्रेशन’ हो जाता है।
 
एक घर दो दुनिया : साजरवाला गांव में रहने वाले नवजीत भील और उसके बेटे हरिसिंह एक ही घर में रहते हुए अलग-अलग हो चुके हैं। कारण यह है पिता रामपाल पंथ में शामिल हो चुका है और बेटा परंपरागत धर्म का पालन करता है। जहां बेटा रहता है, वहां देवी-देवताओं की तस्वीरें टंगी देखी जा सकती है। पर पिता इस कमरे में पैर तक नहीं रखता। दोनों के बीच तनाव बना रहता है। बहसबाजी होती है, लेकिन कोई अपने विश्वास से हटने को तैयार नहीं है। यह हालत कई परिवारों की है।

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