मेरे क़ातिल
मेरे मसीहा
क्यों बार बार
मेरी शायरी पर
तुम शक करते हो
अरे उठाओ छुरी
चीर दो सीना मेरा
मेरे दिल के हर टुकड़े से
मेरी जुबां के हर अलफ़ाज़ में
लहू में डूबा हुआ
तुम्हारा तुम्हारा
सिर्फ तुम्हारा ही नाम होगा
इतनी दूर रहकर
मुझे तड़पाकर
मुझे रुलाकर
खुद ही कहते हो
किसने तोडा है दिल तुम्हारा
तुम्हारी दर्द भरी शायरी ऐसी क्यों है
तुम्ही बताओ
तुम्हे मुझ पर शक क्यों है ,,,अख्तर
मेरे मसीहा
क्यों बार बार
मेरी शायरी पर
तुम शक करते हो
अरे उठाओ छुरी
चीर दो सीना मेरा
मेरे दिल के हर टुकड़े से
मेरी जुबां के हर अलफ़ाज़ में
लहू में डूबा हुआ
तुम्हारा तुम्हारा
सिर्फ तुम्हारा ही नाम होगा
इतनी दूर रहकर
मुझे तड़पाकर
मुझे रुलाकर
खुद ही कहते हो
किसने तोडा है दिल तुम्हारा
तुम्हारी दर्द भरी शायरी ऐसी क्यों है
तुम्ही बताओ
तुम्हे मुझ पर शक क्यों है ,,,अख्तर
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