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21 अक्तूबर 2014

नरक चतुर्दशी (रूप चौदस वैकुंठ चतुर्दशी )

नरक चतुर्दशी (रूप चौदस वैकुंठ चतुर्दशी )
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राजा रंतिदेव भगवान् राम जी के पूर्वज थे ,महान धर्मात्मा महादानी उनको भी यमदूत लेने आये और कहा उनको नरक चलना है राजा ने कारन पुछा तो कहा आपके द्वारा ब्राह्मण भूखा लौट गया कथा कहती है की राजा ने प्रायश्चित किया और नरक से बचे |ये तो रहस्य पूर्ण बाते है रंतिदेव कौन है ,ब्राह्मण क्या है यमदूत कौन ?
आपके जीव आत्मा को रंतिदेव कहते है क्योकि वह आपके शरीर रुपी पुरी का राजा है |आपको ब्रह्म का साक्षात्कार करना था किन्तु आप दान धर्मो आदि करता भोक्ता पने में लगे है |
जब करता बने हो तो भोक्ता हो तो भोक्ता तो बनना ही पड़ेगा ,यमदूत है तुम्हारे जीवन काल का समाप्त होना ,ब्राह्मण भूखा यानी तुमने अपने अन्दर ब्रह्मरुपी परमात्मा के आनंद की अवस्था को जाना ही नहीं तुम जन्मो जन्म से भूखे रहे हो |इसीलिए अब गर्भ नरको में तुम्हे तथा तुम्हारे १४ उपादानो को (१० इन्द्रिया मन ,बुद्धि ,चित्त ,अहंकार इन चोदहो) को जाना ही होगा |इससे बचने का सन्देश है यह नरक चौदस अब इसे तुम्हे वैकुण्ठ चतुर्दशी में बदलना है ,तो करता भोक्ता का आधारभूत तुम्हारा अन्तः करण है जो चौदह अंगो से बना है प्रत्येक अंग के अलग-रजोगुणी तमोगुणी प्रज्ञा और लय चित्त की अनेको वृत्तियाँ अवस्था ये मूढ ,क्षिप्त,विक्षिप्त ,एकाग्र ,विरूद्ध इस प्रकार ये विभागों सहित इस जड़ उपकरण को तुमने में माना है यही मिथ्या भ्रान्ति है |यही तुम्हारा अहंकार कहलाता है|किन्तु वास्तव में जो चेतन है उसमे आत्मा के सानिध्य के कारण ही चेतनता आती है उसे तो जानते ही नहीं |क्योकि मानने से मूढ़ता आती है जानने से ज्ञान ,और जानने के बाद किसी वस्तु का ग्रहण त्याग विवेकपूर्ण होता है |अन्य मानने की भ्रान्ति जो इस जगत में प्रोफेशनल लोगो फेला रखी है माया की प्रवंचना है |इस तरह तुम्हारा नरक तो और भी बढेगा नए नए नरको का सृजन होगा तुम्हारे अन्दर का ब्राह्मण सदेव अपरिचित रहेगा |ब्रह्म जानेति स: ब्रह्मणः वेद का वाक्य है "ब्रह्म मानेती" ऐसा तो नहीं लिखा |आज मानव मान्यताओ की घिसी पीटी लकीरों पर चल रहा है |मान्यता इतनी गहरी समां गयी है की मान्यताओ के लिए दंगे हो जाते है ,इंसान की बनाईगई मान्यताओ की की मूढता इतनी गहरी हो गई है कि उन मान्यताओ की रक्षा के लिए परमात्मा की अनुपम करती मानब के हाथों मानबो की हत्या धर्म की आड़ में करदी जाती है ,ये दमित वासनाओ के दानब धर्म की मान्यताओ को सुनहरे जामे पहनाकर शालीन मुखोटे लगाकर आज मानब जाति को छल रहे है |ये मान्यताये ,अंधविश्वास ,रुढवादिता ,भ्रांतियां ,वाहरी प्रदर्शन ,धर्म के नाम पर फैला पाखंड ,मूर्खताए ,साक्षात् नर्क नहीं है तो क्या है ?मनमानी साधनाए चल रही है ,पशुओ की बलि ,खुट मानस खाना है इसको धर्म का ,प्रसाद का रूप दिया ज रहा है |गीता में भगवान कहते है ''यों यथा माम प्र्पध्यनते तथा ताहम भजाम्यहम ''जिस देबता को पूजोगे ,जिस तरह की साधना करो गे उसी तरह के शरीरों में जाना होगा ,उसी देबता के बरती समूहों में जन्म लेना होगा ,|भैरब और काली के नाम पर जो लोग शराब और मानस का प्रसाद खा रहे है ,उन्हें मासाहारी योनियों में जाना होगा ,शराबी की तरत अजगर बनना पड़ेगा जहाँ ये भोग सुलभ होगे ,ये नर्क चतुर्दशी का रहस्य एक चेताबनी है नरको की ओर बढते मानब को बैकुंठ की रह दिखता है ये त्यौहार |इस त्यौहार के दो नाम है इसने इक साथ दो बिकल्प खोले है ! चाहो तो सात्बिक जीबन जीकर निर्गुण ब्रह्म में छलांग लगाकर जीबन मुक्त हो जाओ ,जीतेजी बैकुंठ का अनुभब करो परमात्मा में मिलकर सदा शास्वत अमूर्त को उपलब्ध हो जाओ य फिर रजोगुणी ,तमोगुणी साधना करते हुए उन गुणों के अनुरूप जन्मो की अनंत मूर्छा यात्रा में जाओ ( कुत्ता ,कोउआ ,गीध ,सियार लोमड ,शेर ,चोपाया पक्षी आदि बनो )मेजी है मानब अपना रास्ता खुद चुने |चूकी ईसी दिन को रूप चोदस भी कहते है रूप का अर्थ है स्वरुप ,आत्मस्वरूप ,|जो साधक परमात्मा के एस अंतर्निहित रूप को अन्त:अन्वेषण और महाध्यान की पद्दती से जान लेता है बाह परमात्मा से तद्रूप होजाता है ,उसे कहते है रूप चोदस के आनंद में मग्न होना ,तब ये छोड़ बिकार भी उसके आनंद में सहायक होते है जैसे आँखों के खुलने पर पैर जो गड्डे में गिरा रहे थे मंजिल पाने में सहायक हो जाते है |तव मन बुद्धी चित्त अहंकार की जड़ता ऊर्जा में बदल जाती है रॉकेट का ईधन बन जाती है परतपरब्रह्म में प्रबेश हेतु ,ब्रह्म विद ब्रह्म भवेत |हमारे प्रत्येक त्यौहार हमे नर से नारायण बनने का संदेश देते है ,भगवान लक्ष्मी नारायण की आप सभी मित्रों और शत्रुओ पर समान कृपा हो ,मेरा प्रेम सभी पर है ,सभी को मेरा प्रेम प्रेम प्रेम

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