क्यों तुम्हे
मुझ पे भरोसा नहीं
क्यों तुम मुझे
कालपनिक आरोपों से
हर रोज़ यूँ ज़लील करते हो
लो आओ
आज़माओ
क़तरा क़तरा मेरा खून का
सिर्फ तुम्हारा नाम लिखता है
टुकड़ा टुकड़ा मेरे जिस्म का
सिर्फ तुम्हारा नाम बोलता है
फिर क्यों
तुम यूँ ही
मुझे हर रोज़
काल्पनिक आरोपों के घेरे में लेकर
ज़लील करते हो ,,,,,,,,,,,
मुझ पे भरोसा नहीं
क्यों तुम मुझे
कालपनिक आरोपों से
हर रोज़ यूँ ज़लील करते हो
लो आओ
आज़माओ
क़तरा क़तरा मेरा खून का
सिर्फ तुम्हारा नाम लिखता है
टुकड़ा टुकड़ा मेरे जिस्म का
सिर्फ तुम्हारा नाम बोलता है
फिर क्यों
तुम यूँ ही
मुझे हर रोज़
काल्पनिक आरोपों के घेरे में लेकर
ज़लील करते हो ,,,,,,,,,,,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)