ऐ जानेमन
में बहुत कुछ
लिखना चाहता हूँ
तुम्हारे हुस्न
तुम्हारी अदाओ पर
लेकिन
मुआफ़ी चाहता हूँ
में मजबूर
में बेबस हूँ
मेरी क़लम
जब भी चलती है
तेरी खूबसूरती
तेरी अदाओं की तारीफ़ में
क़सम से
अल्फ़ाज़ शर्मा जाते है
क़लम झुक जाती है
तुम्हारे हुस्न की ताज़ीम को ,,,,
कैसे लिखू
कैसे लिखूं
में तुम्हारी तारीफ़ में
मजबूर बेबस हूँ
मुझे मुआफ करना ,,,,अख्तर
में बहुत कुछ
लिखना चाहता हूँ
तुम्हारे हुस्न
तुम्हारी अदाओ पर
लेकिन
मुआफ़ी चाहता हूँ
में मजबूर
में बेबस हूँ
मेरी क़लम
जब भी चलती है
तेरी खूबसूरती
तेरी अदाओं की तारीफ़ में
क़सम से
अल्फ़ाज़ शर्मा जाते है
क़लम झुक जाती है
तुम्हारे हुस्न की ताज़ीम को ,,,,
कैसे लिखू
कैसे लिखूं
में तुम्हारी तारीफ़ में
मजबूर बेबस हूँ
मुझे मुआफ करना ,,,,अख्तर
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