यह
केसी हठधर्मिता है ,,यह केसी लड़ाई है ,,वकीलों की सबसे बढ़ी संस्था बार
कोंसिल ऑफ़ राजस्थान ,,बार कोंसिल ऑफ़ इंडिया बेबस है ,,,,न्यायिक अधिकारीयों
और न्याय दिलवाने वाले वकीलों के बीच चली जंग अब आरपार की लड़ाई के मूड में
है ,,,हाईकोर्ट ,,सुप्रीमकोर्ट इस मामले में नोटिस जारी कर रही है जबकि
वकील महापड़ाव के लिए तैयार हो गए है ,,,समझ में नहीं आता एक वकील जब वकील
होता है तो वकीलों के अस्तित्व के लिए जान की
बाज़ी लगाकर लड़ता है ,,उन्हें उनका हक़ ,,मान सम्मान दिलवाता है ,,लेकिन वही
वकील ,,,वकील होने के कारण जज बना दिया जाता है तो बस फिर हड़ताल और
विवादों के बाद समझाइश के सभी रास्ते बंद कर एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो जाते
है ,,,,,,,इस मामले में अब वकीलों और न्यायिक अधिकारीयों को बैठकर
सम्मानजनक रास्ता निकालना होगा ,,,न्याय के मान सम्मान के लिए बैठकर कुछ
फैसले लेना होंगे ,,,,,,, बार कोंसिल ऑफ़ राजस्थान और बार कोंसिल ऑफ़
इण्डिया के पदाधिकारियों को भी यह समझना होगा के वोह वकीलों के वोट से
जीतते है तो फिर जजों के एजेंट बनकर क्यों काम करे उनके लिए वकीलों का मान
सम्मान पहले है लेकिन वोह जज बनने की कतार में खड़े होकर भूल जाते है के
वकीलों ने उन्हें वोट देकर इस लायक बनाया है ,,,सभी पक्षों के लिए
आत्मचिंतन का प्रश्न है ,,,,,,,,,जनता और पक्षकारों में हा हाकार है सो
प्लीज़ कुछ होना चाहिए ,,झगड़ा हुआ बहुत अब सम्मानजनक समझोता होना चाहिए
,,,अख्तर
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
02 सितंबर 2014
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बेमतलब की लड़ाई है, जिस कारण यह सब विवाद हुआ, वह भी अनुचित था, आखिर वकील होने का मतलब यह तो नहीं कि पेशे की धौंस जमा किसी की सम्पति पर कब्ज़ा करें, अब वहां दाल नहीं गली तो नाक का सवाल बना लड़ाई को दूसरी तरफ मोड़ दिया. पर नुक्सान तो आम आदमी का हो रहा है, मव्वकिलों से अग्रिम फीस ले कर अब तारीख पर वकील बहस नहीं कर रहे, क्या यह उनकी नैतिकता है?लगता है न्याय व्यवस्था इनकी बंधक बन गयी है. आखिर लोगों ने इनका क्या बिगाड़ा है?लानत है ऐसे लोगों को जिन्होंने वकालत जैसे प्रतिष्ठित व्यवसाय को मजाक बना दिया और बदनाम कर दिया , हर पेशी पर मवक्किल से पैसे ले, चुपचाप जा कर कोर्ट में आगे की तारीख ले कर अपनी रोजी रोटी तो आराम से चला रहें हैं, पर क्या वे अपने पेशे के प्रति ईमानदारी बरत रहें हैं?कभी शांत मन से उन्हें सोचना चाहिए, आखिर समस्या के हल करने के तरीके और भी हो सकते हैं , समय धन की जो बर्बादी हो रही है,जेल में कितने ही बेगुनाह बाहर आने का इंतजार कर रहें हैं ,नित नए मुकदमों की फाइलों का ढेर रहा है पर इन कुछ स्वार्थी लोगों की वजह से कोई हल नही निकल रहा
जवाब देंहटाएंसोचना भी इन्हें है , हल भी इन्हें ही निकालना है , क्योंकि मर्ज भी इनकी ही उपज है। और निदान भी ये ही जानते हैं