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12 सितंबर 2014

हिंदू, कौन मुस्लिम बताना मुश्किल है

हिंदू, कौन मुस्लिम बताना मुश्किल है

अखबार में खबर छप गई है। अब वहाँ कुछ हिन्दू प्रचारक पहुँचेंगे और कुछ इस्लामी प्रचारक और गाँव को फिर से पढ़ाना शुरू करेंगे कि हिन्दू मुसलमान क्या होता है? वर्ना सोहार्द्र देख कर उन के और उन के राजनैतिक आकाओँ के पेट में दर्द होता रहेगा।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,दिनेशराय द्विवेदी,

भारत में एक जगह ऐसी है जहां के लोगों को आप अगर लव जिहाद का मतलब समझाने की कोशिश भी करेंगे तो विफल हो जाएंगे। यह है आगरा का खेड़ा साधन। इस जगह का इतिहास ऐसा है कि लव जिहाद जैसे शब्दों के लिए जगह ही नहीं है। 1658 से 1707 के बीच जब मुल्क पर मुगल बादशाह औरंगजेब का राज था, तो गांव वालों को कहा गया कि या तो आप इस्लाम कबूल कर लें या फिर गांव खाली कर दें। उस वक्त सभी ने अपना धर्म बदल दिया। आजादी के बाद कुछ लोगों ने यहां के लोगों को वापस हिंदू बनाने की कोशिश की। कुछ हिंदू हुए, कुछ मुसलमान ही रह गए। लेकिन इसके बाद इन लोगों के लिए धर्म के मायने ही खत्म हो गए।

आगरा से 50 किलोमीटर दूर इस गांव की आबादी है करीब 10 हजार। यहां के विक्रम सिंह ठाकुर कहते हैं, 'धर्म क्यों जरूरी होना चाहिए? इसीलिए मुझे लव जिहाद जैसी बकवास समझ में नहीं आती। मेरी मां खुशनुमा एक मुसलमान हैं। मेरे पिता कमलेश सिंह एक ठाकुर हैं। मेरी बहन सीत की शादी इंजमाम से हुई है और मेरी पत्नी शबाना ने कुछ दिन पहले एक बेटे को जन्म दिया है जिसका नाम है संतोष।'खेड़ा साधन में एक परिवार में अगर चार भाई हैं तो उनमें से दो हिंदू हैं और दो मुसलमान। पति अगर हिंदू तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसकी पत्नी मुसलमान है या उसके बच्चों के नाम हिंदू परंपरा से रखे गए हैं या इस्लामिक। यहां मुसलमान मंदिरों में जाते हैं और हिंदू दरगाहों पर। ईद और दीवाली पर आप किसी घर को देखकर नहीं बता सकते कि कहां कौन से धर्म के लोग रहते हैं।

55 साल के शौकत अली बताते हैं कि हाल ही में उन्होंने अपने सबसे छोटे बेटे राजू सिंह की शादी सुनील ठाकुर और रेशमा की बेटी लाजो से तय की है। इस शादी में शौकत के भाई रिजवान और किशन दोनों आएंगे। निकाह एक मंदिर में होगा।

गीता और कुरान एक साथ रखे सलीम ठाकुर कहते हैं कि जब हम सांप्रदायकि दंगों की बात सुनते हैं तो बहुत हैरत होती है। वह बताते हैं, 'जब से मैंने होश संभाला है, मेरे पड़ोसी लव कुश सिंह को मैंने ईद पर नमाज पढ़ते देखा है। और गांव के बाकी लोगों की तरह वह होली और दीवाली भी खूब धूमधाम से मनाता है।'
यहां इस्लाम की सिर्फ तीन मान्यताएं हैं, खतना, हलाल मीट और अंतिम संस्कार। बाकी किसी लिहाज से मुसलमान हिंदू से जुदा नहीं हैं।

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