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12 सितंबर 2014

इस तरह

डॉ किरण मिश्रा

मैं तुम्हें सोचती हूँ
क्या तुम मुझे सोचते हो
तुम सोचो मुझे और मैं तुम्हे
सोचते -सोचते
हमारे दरिमायन
दुनिया आएगी
और वो दुनिया भी
हमारी हो जाएगी
इस तरह
जिंदगी कट जाएगी
तुम्हारे झरते -गिरते पल मेरे होंगे
मेरे हर सपने तुम्हारे होंगे
मिलेंगे फिर हम और एक सपना रचेंगे
तो आओ
देखे खूबसूरत सुबह को
देखे अंगड़ाई लेती जिंदगी को
मैं तुम्हें सोचती हूँ
सोचो तुम मुझे भी ....

++kiran++

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