,,मुहम्मद स.अ.वसल्लम ने फरमाया , "मैं मुअल्लिम (teacher) बना कर भेजा गया हूं... हदीस
,,,अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली र.ज़ फरमाते हैं "जिसने मुझे एक हर्फ भी सिखाय| मैं उसका ग़ुुलाम हूँ, वो चाहे मुझे बेचे , आज़ाद करे या ग़ुुलाम बनाए रखे।
,,,अल्लामा इक़बाल के ये अल्फाज़ मुअल्लिम की अज़मत ओ अहमियत के अक्कास हैं कि "उस्ताद दरअस्ल क़ौम के मुहाफिज़ हैं क्योंकि आइन्दा नस्लों को संवारना और उन को मुल्क की खिदमत के क़ाबिल बनाना उन्हीं के सिपुर्द है।
,,सब मेहनतों से आला दर्जे की मेहनत और कारगुज़ारियों में सब से बेश क़ीमत कारगुज़ारी मुअल्लिमों की है।
,,,मुअल्लिम का फर्ज़ सब फराएज़ से ज़्यादा मुश्किल और अहम है क्योंकि तमाम क़िस्म की अखलाक़ी, तमद्दुनी और मज़हबी नेकीयों की कलीद उस के हाथ में है और हर क़िस्म की तरक़्क़ी का सरचश्मा उसकी मेहनत है।
,,,अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली र.ज़ फरमाते हैं "जिसने मुझे एक हर्फ भी सिखाय| मैं उसका ग़ुुलाम हूँ, वो चाहे मुझे बेचे , आज़ाद करे या ग़ुुलाम बनाए रखे।
,,,अल्लामा इक़बाल के ये अल्फाज़ मुअल्लिम की अज़मत ओ अहमियत के अक्कास हैं कि "उस्ताद दरअस्ल क़ौम के मुहाफिज़ हैं क्योंकि आइन्दा नस्लों को संवारना और उन को मुल्क की खिदमत के क़ाबिल बनाना उन्हीं के सिपुर्द है।
,,सब मेहनतों से आला दर्जे की मेहनत और कारगुज़ारियों में सब से बेश क़ीमत कारगुज़ारी मुअल्लिमों की है।
,,,मुअल्लिम का फर्ज़ सब फराएज़ से ज़्यादा मुश्किल और अहम है क्योंकि तमाम क़िस्म की अखलाक़ी, तमद्दुनी और मज़हबी नेकीयों की कलीद उस के हाथ में है और हर क़िस्म की तरक़्क़ी का सरचश्मा उसकी मेहनत है।
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