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05 सितंबर 2014

पप्पाजी और वकील साहब, इन्होंने ही बनाया है मोदी को ‘नरेंद्र मोदी’

फोटो: अहमदाबाद स्थित हेडगेवार भवन में आरएसएस के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (लाल घेरे में)
 
 
अहमदाबाद। एक ऐसे व्यक्ति, जिन्होंने चार वर्ष में ही देश भर में लगभग 400 स्कूलों का निर्माण करवाने में महती भूमिका निभाई। इन्हीं स्कूलों से प्रतिवर्ष सैकड़ों छात्र-छात्राओं ने शिक्षा प्राप्त की और इन्हीं छात्रों में एक नाम नरेंद्र मोदी का भी शामिल है। उनकी यादें व उनके महान कार्य व समाजसेवा के भाव की छाप आज भी मोदी के जीवन में है। इस महान व्यक्तित्व का नाम है लक्ष्मण माधव ईनामदार।

आज भले ही इस नाम से बहुत कम लोग परिचित हों, लेकिन वकील साहब के उपनाम से शायद लोग उन्हें पहचान सकते हैं। वे 30-35 साल तक पूरे गुजरात में घूमे। ईनामदार थे तो मूल मराठी, लेकिन उन्होंने अपना पूरा जीवन गुजरात के लोगों की भलाई में ही बिताया। लगभग 25 वर्ष की उम्र वे गुजरात के नवसारी आ गए थे। मोदी पर लिखी गई पुस्तक ‘विकास शिल्पी’ में पेज नं. 29 में वकील साहब का उल्लेख मिलता है कि वे मोदी को अपने बेटे जैसा मानते थे। इतना ही नहीं, मोदी ने वकील साहब पर एक पुस्तक ‘सेतुबंध’ भी लिखी है।

वैसे तो नरेंद्र मोदी संघ, जनसंघ और भाजपा के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों को अपना प्रेरणा स्रोत बताते हैं, लेकिन संघ से जुड़ी दो हस्तियां लक्ष्मण राव ईनामदार उर्फ वकील साहब और डॉ. प्राणलाल व्रजलाल दोषी उर्फ पप्पाजी का प्रभाव मोदी के जीवन पर सबसे ज्यादा हुआ। इन्हीं हस्तियों ने ही मोदी के दृष्टिकोण, विचारधारा और खासतौर पर काम करने की कला को प्रभावित किया है। वकील साहब ने जहां मोदी का परिचय संघ से करवाया, वहीं पप्पाजी ने मोदी के शब्दों में कहें तो.. इन्होंने ही पूरी तरह समर्पित होकर समाज के लिए काम करने की प्रेरणा दी।सन् 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने गुजराती भाषा में एक किताब लिखी थी। इस किताब का नाम था ‘ज्योतिपुंज’। पुस्तक के एक अध्याय में मोदी ने डॉ. प्राणलाल दोषी उर्फ पप्पाजी को याद करते हुए उन्हें अपना प्रेरणा स्रोत बताया है। पप्पाजी के प्रति मोदी के मन में कितना सम्मान था। इसका अंदाजा मोदी के इन्हीं शब्दों से ही लगाया जा सकता है।

‘ज्योतिपुंज’ में मोदी ने लिखा है कि मुझे याद नहीं कि पहली बार पप्पाजी से कब मिला था। मैं उस पल को याद भी नहीं कर सकता, क्योंकि मैं हमेशा ही उनके आसपास ही रहा करता था। उनके साथ हुई पहली मुलाकात से लेकर उनके अवसान तक यानी कि मैं कई दशकों तक उनके साथ रहा। इतने लंबे समय में भी वे बिल्कुल बदले नहीं थे। उनका व्यवहार, विचारधारा व व्यक्तित्व सबकुछ वैसा ही रहा। पप्पाजी ने कोलकाता में डेंटिस्ट की पढ़ाई की थी।

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