उज्जैन। हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं में देव-दानवों
द्वारा किया गया समुद्र मंथन का प्रसंग, भगवान विष्णु द्वारा मोहिनी रूप
में देवताओं को अमृत पान कराने के लिए जाना जाता है। दरअसल, हजारों सालों
से यह प्रसंग केवल धार्मिक नजरिए से ही नहीं बल्कि इसमें समाए जीवन को
साधने वाले सूत्रों के लिए भी अहमियत रखता है।
आज भी कई धर्म परंपराएं इसी प्रसंग से जुड़े कई पहलुओं के इर्द-गिर्द
ही घूमती हैं। महाकुंभ में उमड़ने वाला जनसैलाब हो या धन कामना के लिए
लक्ष्मी पूजा, सभी के सूत्र समुद्र की गहराई से निकले इन अनमोल रत्नों व
उनमें समाए प्रतीकात्मक ज्ञान से जुड़े हैं।
आप इस प्रसंग को धार्मिक रीति-रिवाजों या अन्य किसी जरिए से सुनते
हैं, लेकिन कई लोग खासतौर पर युवा पीढ़ी समुद्र मंथन की वजह, उससे निकले
अनमोल रत्नों व उनकी अनूठी खूबियों और रोचक बातों से अनजान है। यहीं नहीं,
इस दौरान भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर भगवान शिव का मोहित होने का पूरा
प्रसंग भी बहुत कम लोगों को ही मालूम हैं।
इस कारण करना पड़ा था देवताओं को समुद्र मंथन
विष्णु पुराण के मुताबिक एक बार ऋषि दुर्वासा वैकुंठ लोक से आ रहे थे।
रास्ते में उन्होंने ऐरावत हाथी पर बैठे इन्द्र को त्रिलोकपति समझ कमल फूल
की माला भेंट की। किंतु वैभव में डूबे इन्द्र ने अहंकार में वह माला ऐरावत
के सिर पर फेंक दी। हाथी ने उस माला को पैरों तले कुचल दिया।
दुर्वासा ऋषि ने इसे स्वयं के साथ कमल फूलों पर बैठने वाली कमला यानी
लक्ष्मी का भी अपमान माना और इन्द्र को श्रीहीन होने का शाप दिया। पौराणिक
मान्यता यह भी है कि इससे इन्द्र दरिद्र हो गया। उसका सारा वैभव गिरकर
समुद्र में समा गया। दैत्यों ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
स्वर्ग का राज्य और वैभव फिर से पाने के लिए भगवान विष्णु ने समुद्र
मंथन करने और उससे निकलने वाले अमृत को खुद देवताओं को पिला अमर बनाने का
रास्ता सुझाया। साथ ही कहा कि यह काम दैत्यों को भी मनाकर ही करना संभव
होगा।
इन्द्रदेव ने इसी नीति के साथ दैत्य राज बलि को समुद्र में समाए
अद्भुत रत्नों व साधनों को पाने के लिए समुद्र मंथन के लिए तैयार किया।
देव-दानवों ने समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकि नाग को
रस्सा (नेति या सूत्र) बनाया। स्वयं भगवान ने कच्छप अवतार लेकर मंदराचल को
डुबने से बचाया।
दरअसल, व्यावहारिक नजरिए से इस घटना से जुड़े प्रतीकात्मक सबक हैं।
मसलन, संसार समुद्र हैं, इसमें मंदराचल पर्वत की तरह मन को स्थिर करने के
लिए कछुए रूपी भगवान की भक्ति के सहारे, वासुकि नाग के प्रेम रूपी सूत्र से
जीवन का मंथन करें। इस तरह इससे निकला ज्ञान रूपी अमृत पीने वाला ही अमर
हो जाता है।
हलाहल (विष) - समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले
मंदराचल व कच्छप की पीठ की रगड़ से समुद्र में आग लगी और भयानक कालकूट जहर
निकला। सभी देव-दानवों और जगत में अफरा-तफरी मच गई। कालों के काल शिव ने इस
विष को गले में उतारा और नीलकंठ बने।
असल में, इसमें भी छुपा संकेत है। शिव के सिर पर गंगा ज्ञान का ही
प्रतीक है यानी जो ज्ञानी होता है, उसमें जीवन के सारे क्लेशों का सामना
करने व बाहर निकलने की शक्ति होती है। यही नहीं, इसमें दूसरों के सुख के
लिए जीने की भी प्रेरणा हैं।
कामधेनु - कामधेनु की सबसे बड़ी खासियत उपयोगी यज्ञ सामग्री देना थी। ब्रह्मलोक तक पहुंचाने वाली जरूरी चीजें जैसे दूध, घी आदि चीजें पाने के लिए ऋषियों को दान की गई। ऋषियों को दान के पीछे यही सीख है कि मेहनत से कमाई धन-दौलत का पहले भलाई में उपयोग करें और संतोष रखें। कामधेनु संतोष का भी प्रतीक है।रवा घोड़ा - समुद्र मंथन से अश्वजाति में श्रेष्ठ, चन्द्रमा की तरह सफेद व चमकीला, मजबूत कद-काठी का दिव्य घोड़ा उच्चै:श्रवा प्रकट हुआ, जो दैत्यों के हिस्से गया और इसे दैत्यराज बलि ने ले लिया।
कामधेनु - कामधेनु की सबसे बड़ी खासियत उपयोगी यज्ञ सामग्री देना थी। ब्रह्मलोक तक पहुंचाने वाली जरूरी चीजें जैसे दूध, घी आदि चीजें पाने के लिए ऋषियों को दान की गई। ऋषियों को दान के पीछे यही सीख है कि मेहनत से कमाई धन-दौलत का पहले भलाई में उपयोग करें और संतोष रखें। कामधेनु संतोष का भी प्रतीक है।रवा घोड़ा - समुद्र मंथन से अश्वजाति में श्रेष्ठ, चन्द्रमा की तरह सफेद व चमकीला, मजबूत कद-काठी का दिव्य घोड़ा उच्चै:श्रवा प्रकट हुआ, जो दैत्यों के हिस्से गया और इसे दैत्यराज बलि ने ले लिया।
उच्चै:श्रवा में श्रवा का मतलब ख्याति या कीर्ति भी है। यानी जो मन का
स्थिर रख काम करे वह मान व पैसा भी कमाता है। किंतु जो केवल कीर्ति के
पीछे भागे उसे फल यानी अमृत नहीं मिलता। दैत्यों के साथ भी ऐसा ही हुआ।
असल में हाथी की आंखे छोटी होती है। इसलिए ऐरावत, पैनी नजर या गहरी सोच का प्रतीक है। संकेत है कि शरीर सुख ही नहीं आत्मा की और भी ध्यान दें।
ऐरावत हाथी - चार दांतों वाला अद्भुत हाथी, जिसके
दिव्य रूप व डील-डौल के आगे कैलाश पर्वत की महिमा भी कुछ भी नहीं।
स्कन्दपुराण के मुताबिक ऐरावत के सिर से मद बह रहा था और उसके साथ 64 और
सफेद हाथी भी मंथन से निकले। ऐरावत को देवराज ने प्राप्त किया।
असल में हाथी की आंखे छोटी होती है। इसलिए ऐरावत, पैनी नजर या गहरी सोच का प्रतीक है। संकेत है कि शरीर सुख ही नहीं आत्मा की और भी ध्यान दें।
महालक्ष्मी - समुद्र मंथन से निकली साक्षात
मातृशक्ति व महामाया महालक्ष्मी के तेज, सौंदर्य व रंग-रूप ने सभी को
आकर्षित किया। लक्ष्मीजी को मनाने के लिए सभी जतन करने लगे। किसे अपनाएं यह
सोच लक्ष्मीजी ऋषियों के पास गई, किंतु ज्ञानी व तपस्वी होने पर भी क्रोधी
होने से उन्हें नहीं चुना।
इसी तरह देवताओं को महान होने पर भी कामी, मार्कण्डेयजी को चिरायु
होने पर भी तप में लीन रहने, परशुराम जी को जितेन्द्रिय होने पर भी कठोर
होने की वजह से नहीं चुना।
आखिर में लक्ष्मीजी ने शांत, सात्विक, सारी शक्तियों के स्वामी और
कोमल हृदय होने से भगवान विष्णु को वरमाला पहनाई। संदेश यही है कि जिनका मन
साफ और सरल होता है उन पर लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
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