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02 जुलाई 2014

इल्म को बढ़ने से नही रोका जा सकता।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की शादी
पैग़म्बरे इस्लाम(स.) जब पच्चीस साल के हुए तो उन्होंने जनाबे ख़दीजा की पेश कश पर उनसे शादी की। जनाबे ख़दीजा एक मालदार औरत थीं और आपकी ज़ात में ज़ाहिरी व बातिनी तमाम ख़ूबिया पायी जाती थीं। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की बेसत के बाद उन्होंने अपनी पूरी दौलत इस्लाम पर कुरबान कर दी। उन्होंने पूरी ज़िन्दगी पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का दिल व जान से साथ दिया। वह इस दुनिया से उस वक़्त रुख़सत हुईं जब मस्जिदुल हराम में सिर्फ़ तीन इंसान नमाज़ पढ़ते थे, पैग़म्बरे इस्लाम (स.) हज़रत अली अलैहिस्सलाम और जनाबे ख़दीजा अलैहा अस्सलाम।
इस शादी के नतीजे में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा इस दुनिया में तशरीफ़ लाईं, जो आगे चलकर हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़ोजा और ग्यारह मासूम इमामों की माँ बनी। हमारा दरूद व सलाम हो पैग़म्बरे इस्लाम और आपकी औलाद पर।
इस मक़ाले के आख़िर में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की एक सौ हदीसें लिख रहें हैं, जिन पर अमल कर के हम अपनी दीनी व दुनयवी ज़िन्दगी को कामयाब बना सकते हैं।
1. आदमी जैसे जैसे बूढ़ा होता जाता है उसकी हिरस व तमन्नाएं जवान होती जाती हैं।
2. अगर मेरी उम्मत के आलिम व हाकिम फ़ासिद होंगे तो उम्मत फ़ासिद हो जायेगी और अगर यह नेक होंगें तो उम्मत नेक होगी।
3. तुम सब, आपस में एक दूसरे की देख रेख के ज़िम्मेदार हो।
4. माल के ज़रिये सबको राज़ी नही किया जा सकता, मगर अच्छे अख़लाक़ के ज़रिये सबको ख़ुश रखा जा सकता है।
5. नादारी एक बला है, जिस्म की बीमारी उससे बड़ी बला है और दिल की बीमारी (कुफ़्र व शिर्क) सबसे बड़ी बला है।
6. मोमिन हमेशा हिकमत की तलाश में रहता है।
7. इल्म को बढ़ने से नही रोका जा सकता।
8. इंसान का दिल, उस “ पर ” की तरह है जो बयाबान में किसी दरख़्त की शाख़ पर लटका हुआ हवा के झोंकों से ऊपर नीचे होता रहता है।
9. मुसलमान, वह है, जिसके हाथ व ज़बान से मुसलमान महफ़ूज़ रहें।
10. किसी की नेक काम के लिए राहनुमाई करना भी ऐसा ही है, जैसे उसने वह नेक काम ख़ुद किया हो।
12. माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है।
13. औरतों के साथ बुरा बर्ताव करने में अल्लाह से डरों और जो नेकी उनके शायाने शान हो उससे न बचो।
14. तमाम इंसानों का रब एक है और सबका बाप भी एक ही है, सब आदम की औलाद हैं और आदम मिट्टी से पैदा हुए है लिहाज़ तुम में अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा अज़ीज़ वह है जो तक़वे में ज़्यादा है।
15. ज़िद, से बचो क्योंकि इसकी बुनियाद जिहालत है और इसकी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ती है।
16. सबसे बुरा इंसान वह है, जो न दूसरों की ग़लतियों को माफ़ करता हो और न ही दूसरों की बुराई को नज़र अंदाज़ करता हो, और उससे भी बुरा इंसान वह है जिससे दूसरे इंसान न अमान में हो और न उससे नेकी की उम्मीद रखते हों।
17 ग़ुस्सा न करो और अगर ग़ुस्सा आ जाये, तो अल्लाह की क़ुदरत के बारे में ग़ौर करो।
18 जब तुम्हारी तारीफ़ की जाये, तो कहो, ऐ अल्लाह ! तू मुझे उससे अच्छा बना दे जो ये गुमान करते है और जो यह मेरे बारे में नही जानते उसको माफ़ कर दे और जो यह कहते हैं मुझे उसका मसऊल क़रार न दे।
19 चापलूस लोगों के मूँह पर मिट्टी मल दो। (यानी उनको मुँह न लगाओ)
20 अगर अल्लाह किसी बंदे के साथ नेकी करना चाहता है, तो उसके नफ़्स को उसके लिए रहबर व वाइज़ बना देता है।
21 मोमिन हर सुबह व शाम अपनी ग़लतियों का गुमान करता है।
22 आपका सबसे बड़ा दुश्मन नफ़्से अम्मारह है, जो ख़ुद आपके अन्दर छुपा रहता है।
23 सबसे बहादुर इंसान वह हैं जो नफ़्स की हवा व हवस पर ग़ालिब रहते हैं।
24 अपने नफ़्स की हवा व हवस से लड़ो, ताकि अपने वुजूद के मालिक बने रहो।
25 ख़ुश क़िस्मत हैं, वह लोग, जो दूसरों की बुराई तलाश करने के बजाये अपनी बुराईयों की तरफ़ मुतवज्जेह रहते हैं।
26 सच, से दिल को सकून मिलता है और झूट से शक व परेशानियाँ बढ़ती है।
27 मोमिन दूसरों से मुहब्बत करता है और दूसरे उससे मुहब्बत करते हैं।
28 मोमेनीन आपस में एक दूसरे इसी तरह वाबस्ता रहते हैं जिस तरह किसी इमारत के तमाम हिस्से आपस में एक दूसरे से वाबस्ता रहते हैं।
29 मोमेनीन की आपसी दोस्ती व मुब्बत की मिसाल जिस्म जैसी है जब ज़िस्म के एक हिस्से में दर्द होता है तो पर बाक़ी हिस्से भी बे आरामी महसूस करते हैं।
30 तमाम इंसान कंघें के दाँतों की तरह आपस में बराबर हैं।
31 इल्म हासिल करना तमाम मुसलमानों पर वाजिब है।
32 फ़कीरी, जिहालत से, दौलत, अक़्लमंदी से और इबादत, फ़िक्र से बढ़ कर नही है।
33 झूले से कब्र तक इल्म हासिल करो।
34 इल्म हासिल करो चाहे वह चीन में ही क्योँ न हो।
35 मोमिन की शराफ़त रात की इबादत में और उसकी इज़्ज़त दूसरों के सामने हाथ न फैलाने में है।
36 साहिबाने इल्म, इल्म के प्यासे होते है।
37 लालच इंसान को अंधा व बहरा बना देता है।
39 परहेज़गारी, इंसान के ज़िस्म व रूह को आराम पहुँचाती है।
40 अगर कोई इंसान चालीस दिन तक सिर्फ़ अल्लाह के लिए ज़िन्दा रहे, तो उसकी ज़बान से हिकमत के चश्मे जारी होंगे।
41 मस्जिद के गोशे में तन्हाई में बैठने से ज़्यादा अल्लाह को यह पसंद है, कि इंसान अपने ख़ानदान के साथ रहे।
42 आपका सबसे अच्छा दोस्त वह है, जो आपको आपकी बुराईयों की तरफ़ तवज्जोह दिलाये।
43 इल्म को लिख कर महफ़ूज़ करो।
44 जब तक दिल सही न होगा, ईमान सही नही हो सकता और जब तक ज़बान सही नही होगी दिल सही नही हो सकता।
46 तन्हा अक़्ल के ज़रिये ही नेकी तक पहुँचा जा सकता है लिहाज़ा जिनके पास अक़्ल नही है उनके पास दीन भी नही हैं।
47 नादान इंसान, दीन को, उसे तबाह करने वाले से ज़्यादा नुक़्सान पहुँचाते हैं।
48 मेरी उम्मत के हर अक़्लमंद इंसान पर चार चीज़ें वाजिब हैं। इल्म हासिल करना, उस पर अमल करना, उसकी हिफ़ाज़त करना और उसे फैलाना।
49 मोमिन एक सुराख़ से दो बार नही डसा जाता।
50 मैं अपनी उम्मत की फ़क़ीरी से नही, बल्कि बेतदबीरी से डरता हूँ।
51 अल्लाह ज़ेबा है और हर ज़ेबाई को पसंद करता है।
52 अल्लाह, हर साहिबे फ़न मोमिन को पसंद करता।
53 मोमिन, चापलूस नही होता।
54 ताक़तवर वह नही,जिसके बाज़ू मज़बूत हों, बल्कि ताक़तवर वह है जो अपने ग़ुस्से पर ग़ालिब आ जाये।
56 सबसे अच्छा घर वह है, जिसमें कोई यतीम इज़्ज़त के साथ रहता हो।
57 कितना अच्छा हो, अगर हलाल दौलत, किसी नेक इंसान के हाथ में हो।
58 मरने के बाद अमल का दरवाज़ा बंद हो जाता है,मगर तीन चीज़े ऐसी हैं जिनसे सवाब मिलता रहता है, सदक़-ए-जारिया, वह इल्म जो हमेशा फ़ायदा पहुँचाता रहे और नेक औलाद जो माँ बाप के लिए दुआ करती रहे।
59 अल्लाह की इबादत करने वाले तीन गिरोह में तक़सीम हैं। पहला गिरोह वह है जो अल्लाह की इबादत डर से करता है और यह ग़ुलामों वाली इबादत है। दूसरा गिरोह वह जोअल्लाह की इबादत इनाम के लालच में करता है और यह ताजिरों वाली इबादत है। तीसरा गिरोह वह है जो अल्लाह की इबादत उसकी मुहब्बत में करता है और यह इबादत आज़ाद इंसानों की इबादत है।
60 ईमान की तीन निशानियाँ हैं, तंगदस्त होते हुए दूसरों को सहारा देना, दूसरों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए अपना हक़ छोड़ देना और साहिबाने इल्म से इल्म हासिल करना।
61 अपने दोस्त से दोस्ती का इज़हार करो ताकि मुब्बत मज़बूत हो जाये।
62 तीन गिरोह दीन के लिए ख़तरा हैं, बदकार आलिम, ज़ालिम इमाम और नादान मुक़द्दस।
63 इंसानों को उनके दोस्तों के ज़रिये पहचानों, क्योँकि हर इंसान अपने हम मिज़ाज़ इंसान को दोस्त बनाता है।
64 गुनहाने पिनहनी (छुप कर गुनाह करना) से सिर्फ़ गुनाह करने वाले को नुक़्सान पहुँचाता है लेकिन गुनाहाने ज़ाहिरी (खुले आम किये जाने वाले गुनाह) पूरे समाज को नुक़्सान पहुँचाते है।
65 दुनिया के कामों में कामयाबी के लिए कोशिश करो मगर आख़ेरत के लिए इस तरह कोशिश करो कि जैसे हमें कल ही इस दुनिया से जाना है।
66 रिज़्क़ को ज़मीन की तह में तलाश करो।
67 अपनी बड़ाई आप बयान करने से इंसान की क़द्र कम हो जाती है और इनकेसारी से इंसान की इज़्ज़त बढ़ती है।
68 ऐ अल्लाह ! मेरी ज़्यादा रोज़ी मुझे बुढ़ापे में अता फ़रमाना।
69 बाप पर बेटे के जो हक़ हैं उनमें से यह भी हैं कि उसका अच्छा नाम रखे, उसे इल्म सिखाये और जब वह बालिग़ हो जाये तो उसकी शादी करे।
70 जिसके पास क़ुदरत होती है, वह उसे अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करता है।
71 सबसे वज़नी चीज़ जो आमाल के तराज़ू में रखी जायेगी वह ख़ुश अखलाक़ी है।
72 अक़्लमंद इंसान जिन तीन चीज़ों की तरफ़ तवज्जोह देते हैं, वह यह हैं ज़िंदगी का सुख, आखेरत का तोशा (सफ़र में काम आने वाले सामान) और हलाल ऐश।
73 ख़ुश क़िसमत हैं, वह इंसान, जो ज़्यादा माल को दूसरों में तक़सीम कर देते हैं और ज़्यादा बातों को अपने पास महफ़ूज़ कर लेते हैं।
74 मौत हमको हर ग़लत चीज़ से बे नियाज़ कर देती है।
75 इंसान हुकूमत व मक़ाम के लिए कितनी हिर्स करता है और आक़िबत में कितने रंज व परेशानियाँ बर्दाश्त करता है।
76 सबसे बुरा इंसान, बदकार आलिम होता है।
77 जहाँ पर बदकार हाकिम होंगे और जाहिलों को इज़्ज़त दी जायेगी वहाँ पर बलायें नाज़िल होगी।
78 लानत हो उन लोगों पर जो अपने कामों को दूसरों पर थोपते हैं।
79 इंसान की ख़ूबसूरती उसकी गुफ़्तुगू में है।
80 इबादत की सात क़िस्में हैं और इनमें सबसे अज़ीम इबादत रिज़्क़े हलाल हासिल करना है।
81 समाज में आदिल हुकूमत का पाया जाना और क़ीमतों का कम होना, इंसानों से अल्लाह के ख़ुश होने की निशानी है।
82 हर क़ौम उसी हुकूमत के काबिल है जो उनके दरमियान पायी जाती है।
83 ग़लत बात कहने से कीनाह के अलावा कुछ हासिल नही होता।
85 जो काम बग़ैर सोचे समझे किया जाता है उसमें नुक़्सान का एहतेमाल पाया जाता है।
87 दूसरों से कोई चीज़ न माँगो, चाहे वह मिस्वाक करने वाली लकड़ी ही क्योँ न हो।
88 अल्लाह को यह पसंद नही है कि कोई अपने दोस्तों के दरमियान कोई खास फ़र्क़ रखे।
89 अगर किसी चीज़ को फाले बद समझो, तो अपने काम को पूरा करो, अगर कोई किसी बुरी चीज़ का ख़्याल आये तो उसे भूल जाओ और अगर हसद पैदा हो तो उससे बचो।
90 एक दूसरे की तरफ़ मुहब्बत से हाथ बढ़ाओ क्योँकि इससे कीनह दूर होता है।
91 जो सुबह उठ कर मुसलमानों के कामों की इस्लाह के बारे में न सोचे वह मुसलमान नही है।
92 ख़ुश अख़लाकी दिल से कीनह को दूर करती है।
93 हक़ीक़त कहने में, लोगों से नही डरना चाहिए।
94 अक़लमंद इंसान वह है जो दूसरों के साथ मिल जुल कर रहे।
95 एक सतह पर ज़िंदगी करो ताकि तुम्हारा दिल भी एक सतह पर रहे। एक दूसरे से मिलो जुलो ताकि आपस में मुहब्बत रहे।
96 मौत के वक़्त, लोग पूछते हैं कि क्या माल छोड़ा और फ़रिश्ते पूछते हैं कि क्या नेक काम किये।
97 वह हलाल काम जिससे अल्लाह को नफ़रत है, तलाक़ है।
98 सबसे बड़ा नेक काम, लोगों के दरमियान सुलह कराना।
99 ऐ अल्लाह तू मुझे इल्म के ज़रिये बड़ा बना, बुर्दुबारी के ज़रिये ज़ीनत दे, परहेज़गारी से मोहतरम बना और तंदरुस्ती के ज़रिये खूबसूरती अता कर।

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