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24 जुलाई 2014

शबे क़द्र के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है।
بسم الله الرحمن الرحيم

1. हमने (इस कुरान) को शबे क़द्र में नाज़िल (करना शुरू) किया

2. और तुमको क्या मालूम शबे क़द्र क्या है

3. शबे क़द्र (मरतबा और अमल में) हज़ार महीनो से बेहतर है

4. इस (रात) में फ़रिश्ते और जिबरील (साल भर की) हर बात का हुक्म लेकर अपने परवरदिगार के हुक्म से नाज़िल होते हैं

5. ये रात सुबह के तुलूअ होने तक (अज़सरतापा) सलामती है


क्या शबे क़द्र सब के लिये एक रात है या हर किसी के लिये अलग है? क्या शबे क़द्र का मुबारक होना लोगों से सम्बंधित है या नहीं? तसनीम साइट की रिपोर्ट के अनुसार हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अन्सारियान इन सवालों के जवाब देते हुए कहते हैं- शबे क़द्र सबके लिये एक रात है और इसका लोगों के हालात और मानसिकता से कोई सम्बंध नहीं है।


क्या शबे क़द्र सब के लिये एक रात है या हर किसी के लिये अलग है? क्या शबे क़द्र का मुबारक होना लोगों से सम्बंधित है या नहीं? तसनीम साइट की रिपोर्ट के अनुसार हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अन्सारियान इन सवालों के जवाब देते हुए कहते हैं- शबे क़द्र सबके लिये एक रात है और इसका लोगों के हालात और मानसिकता से कोई सम्बंध नहीं है। दीन के सुबूत यह बताते हैं कि शबे क़द्र केवल रसूले अकरम स. के ज़माने या अरब के क्षेत्र से सम्बंधित नहीं थी बल्कि हर ज़माने और हर जगह पर अपनी महानता और महत्व के साथ मौजूद है।
हो सकता है कि इससे यह कल्पना हो कि शबे क़द्र पूरे साल में एक है और ज़मीन के हर क्षेत्र और हर इलाक़े में एक साथ आती है और उसके शुरू और ख़त्म होने का समय एक है। इस तरह से कि पूरी ज़मीन पर एक साथ उसका समय शुरू होता है और एक साथ समाप्त होता है।
यह कहना ग़लत है, क्योंकि ज़मीन गोलाकार है और हमेशा आधी रौशनी में और आधी अंधेरे में रहती है यानी आधी ज़मीन पर रात रहती है और आधी ज़मीन पर दिन रहता है। इसलिये यह बात सम्भव नहीं है कि पूरी धरती पर हर जगह एक साथ एक समय हो।
यह कि शबे क़द्र पूरे साल में एक रात है इस से मुराद यह है कि हर इलाक़े के लोगों के लिये क़मरी महीने के हिसाब से एक रात शबे क़द्र होती है।
या इस तरह से कहा जाए कि हर जगह और हर क्षेत्र के रहने वाले अपने क्षेत्र के हिसाब से क़मरी महीने की शुरुवात करते हैं जिसका पहला महीना मोहर्रम होता है और कुछ महीने गुज़रने के बाद रमज़ान का महीना आता है कि जिसकी उन्नीसवीं, इक्कीसवीं या तेइसवीं की रात, शबे क़द्र होती है।
यह विषय कि हर जगह के रहने वाले अपने पवित्र इस्लामी समय को अपने क्षेत्र के समय के हिसाब से निर्धारित करें, यह शबे क़द्र से विशिष्ठ नहीं है बल्कि सभी पवित्र समयों के लिये यही तरीक़ा होता है जैसे ईदुल फ़ित्र का दिन, ईदुल अज़हा का दिन इस्लाम में पवित्र दिन होता है कि इस दिन की ख़ास इबादतें और अहकाम हैं और इनमें से हर एक ईद हर क्षेत्र में वहाँ के हिसाब से मनाई जाती है। इसी वजह से बहुत से समयों में जैसे ईदुल अज़हा सऊदी अरब में, ईरान में और दूसरे देशों से एक दिन पहले मनाई जाती है।
यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि यह हिसाब शबे क़द्र के बारे में इस विषय से टकराव नहीं रखता कि उस रात फ़रिश्ते नाज़िल होते हैं। क्योंकि यह सब कुछ ख़ुदा वन्दे आलम की रहमत का नतीजा है जो इस सब में होती है इसलिये हर जगह के लोगों के लिये अपने क्षेत्र के हिसाब से शबे क़द्र होती है और उसी शब में उसी इलाक़े के लिये फ़रिश्ते भी नाज़िल होते हैं।
इस सवाल का इस तरह भी जवाब दिया गया है कि शबे क़द्र एक रात से ज़्यादा नहीं है लेकिन पूरी ज़मीन में एक पूरी रात 24 घण्टे की और इसी तरह पूरा दिन 24 घण्टे का होता है और उनमें से हर ज़माना एक वक़्त में आधी दुनिया को दिन और आधी दुनिया को रात की सूरत में अपने घेरे में लिये रहता है।
इसलिये जब सऊदी अरब में शबे क़द्र होती है तो शबे क़द्र की कुछ रात ईरान की उस रात से जुड़ जाती है जिस रात में ईरान में शबे क़द्र के आमाल अन्जाम दिये जाते हैं यानी वह रात जारी रहती है। या यूँ कहा जाए कि सारी रातें और सारे दिन यही हालत रखते हैं कि 24 घण्टे की सूरत में धीरे धीरे पूरी ज़मीन को अपने घेरे में ले लेते हैं। इसी लिये रिवायतों में आया है कि शबे क़द्र के दिन की फ़ज़ीलत और बरकत शबे क़द्र की रात की बरकत से कम नहीं है।

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