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22 जुलाई 2014

भ्रष्‍ट जज के प्रमोशन मामले पर काटजू ने लाहोटी को लपेटा, मांगे 6 सवालों के जवाब




(फोटो: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू।)
 
नई दिल्ली. मनमोहन सरकार बचाने के लिए मद्रास हाईकोर्ट के एक भ्रष्ट जज को प्रमोशन दिलवाने का खुलासा करने के एक दिन बाद सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया आर.सी. लाहोटी से छह सवाल पूछे हैं। जस्टिस लाहोटी ने कहा था कि उन्‍होंने अपने जीवन में कुछ गलत नहीं किया है। उनके इस बयान पर सफाई मांगते हुए जस्टिस काटजू ने ब्‍लॉग लिख कर उनसे ये बातें पूछी हैं-
 
1. मैंने पहले चेन्नई से उन्हें एक पत्र लिखा था कि मद्रास हाईकोर्ट के एडिशनल जज पर गंभीर आरोप लगे हुए हैं और इसीलिए उनके खिलाफ गुप्त जांच होनी चाहिए। उसके बाद मैं निजी तौर पर जस्टिस लाहोटी से दिल्ली में मिला था और मैंने दोबारा उन एडिशनल जज के खिलाफ आईबी जांच की सिफारिश की थी। यह सच है या नहीं, बताएं?
 
2. क्‍या यह सच नहीं है कि मेरे अनुरोध पर जस्टिस लाहोटी से उन जज के खिलाफ गुप्‍त आईबी जांच का आदेश दिया था? 
 
3. क्‍या यह सही नहीं है कि दिल्‍ली में जस्टिस लाहोटी से निजी तौर पर मिलने के कुछ हफ्ते बाद जब मैं चेन्नई में था, तो उन्होंने मुझे दिल्ली से फोन कर बताया था कि आईबी ने पूरी जांच के बाद पाया है कि वह जज भ्रष्टाचार में लिप्त हैं? 
 
4. ये सच है या नहीं कि एडिशनल जज के खिलाफ आईबी की रिपोर्ट आने के बाद तब के सीजेआई लोहाटी ने तीन जजों के कोलेजियम की बैठक बुलाई थी। इस कोलेजियम में वह खुद, जस्टिस सब्बरवाल और जस्टिस रूमा पाल शामिल थीं। कोलेजियम ने भारत सरकार से यह सिफारिश की थी कि इन एडिशनल जज के दो साल के कार्यकाल को और विस्तार नहीं दिया जाए? 
 
5.  ऐसा है या नहीं कि कोलेजियम के तीन जजों की सिफारिश भारत सरकार को भेजे जाने के बाद जस्टिस लाहोटी ने कोलेजियम के अन्य दो जजों से बिना सलाह किए भारत सरकार को पत्र लिखकर यह कहा था कि इन एडिशनल जज के कार्यकाल को एक साल का विस्तार दिया जाए? 
 
6. आईबी रिपोर्ट में जज को भ्रष्टाचार में लिप्त पाया गया था, तो उन्‍होंने (जस्टिस लाहोटी) एडिशनल जज के कार्यकाल को एक साल का विस्तार दिए जाने की सिफारिश क्‍यों की?  
 
काटजू ने अपने ब्लॉग में लिखा, 'कुछ लोगों ने मेरे बयान की टाइमिंग को लेकर टिप्पणी की। कुछ तमिल लोगों ने मेरे फेसबुक पेज पर टिप्पणी की है कि मैं अपने फेसबुक पेज पर काफी सारे तथ्य पोस्ट कर रहा हूं, तो मुझे मद्रास हाईकोर्ट को लेकर अपने अनुभव भी साझा करने चाहिए। मैंने तभी अपने अनुभव साझा करना शुरू कर दिया और मुझे यह अनुभव भी याद था, इसलिए मैंने इसे पोस्ट किया।'
 
काटजू ने अपने पिछले ब्‍लॉग में लिखा था...

मद्रास हाईकोर्ट के एक एडिशनल जज थे जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। इससे पहले उन्हें तमिलनाडु में सीधे जिला जज के तौर पर नियुक्त किया गया था। उस दौरान उनके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट के अलग-अलग पोर्टफोलियो वाले जजों ने कम-से-कम आठ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं, लेकिन मद्रास हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ने अपनी कलम की ताकत से सभी टिप्पणियों को खारिज कर दिया था। यही जज आगे चलकर मद्रास हाईकोर्ट में एडिशनल जज बन गए। जब नवंबर 2004 में मैं मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बना,वह तब तक इसी पद पर थे। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इस जज को तमिलनाडु के एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता का समर्थन प्राप्त था। मुझे बताया गया कि डिस्ट्रिक्ट जज रहते हुए इन जज ने राज्य के एक बड़े नेता को जमानत दी थी।

इन जज साहब की शिकायत मैंने तत्कालीन मुख्य न्यायधीश आरसी लाहोटी से की और जज के खिलाफ एक गुप्त आईबी जांच कराने की गुजारिश की। कुछ हफ्ते बाद जस्टिस लाहोटी ने कहा कि जज के खिलाफ जो शिकायत मैंने की थी, वे सही पाई गईं। आईबी को इस जज के करप्ट होने के पर्याप्त सबूत मिले।
 
तब मैने सोचा था कि इन (मद्रास हाईकोर्ट के एडिशनल जज) जज को आईबी की रिपोर्ट आने के बाद उनके पद से हटा दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उन्हें अगले एक साल के लिए भी एडिशनल जज नियुक्त कर दिया गया। इस दौरान 6 एडशिनल जज को हाईकोर्ट का परमानेंट जज नियुक्त कर दिया गया।

मैंने इस बात को बाद में समझा कि यह आखिर यह कैसे हुआ। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे सीनियर जज होते हैं। जबकि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए तीन सबसे सीनियर जजों की कॉलेजियम फैसला लेती है।
उस समय सुप्रीम कोर्ट के जज रहे 3 सीनियर जजों में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस लाहोटी,जस्टिस सबरवाल और जस्टिस रूमा पाल शामिल थीं।  उस समय सुप्रीम कोर्ट की इस कॉलेजियम ने उक्त जज के खिलाफ आई आईबी की रिपोर्ट के आधार पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें आगे जज के तौर पर नियु्क्त ना किए जाने की सिफारिश केंद्र को भेजी थी।

उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी और कांग्रेस इस गठबंधन सरकार में शामिल सबसे बड़ी पार्टी थी। लेकिन उसके पास लोकसभा में अपना बहुमत नहीं था वह बहुमत के लिए दूसरी छोटी पार्टियों पर निर्भर थी। पार्टी के यह बड़ा सहयोगी दल तमिलनाडू से था जो इस भ्रष्ट जज के समर्थन में रहा। सरकार ने कोलेजियम के 3 जजों की सिफारिश पर सरकार ने फैसला नहीं लिया।

यह जानकारी मुझे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिली जब वे यूएन की सभा में शामिल होने न्यूयॉर्क जा रहे थे। यह मुलाकात दिल्ली एयरपोर्ट पर हुई थी। पीएम ने मुझसे कहा कि तमिलनाडु की इस पार्टी के एक मंत्री उस जज की नियुक्ति को आगे बढ़ाना चाहते हैं। जब प्रधानमंत्री न्यूयॉर्क से लौटे तो तमिलनाडु की इस पार्टी ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। क्योंकि सरकार ने उक्त जज की नियुक्ति को आगे नहीं बढाया था। तमिलनाडु की इस राजनीतिक पार्टी के समर्थन वापस लेने से मनमोहन सरकार संकट में आ गई थी,लेकिन पीएम से कांग्रेस के सीनियर नेताओं से कहा कि वे चिंता न करें। सब कुछ मैनेज कर लिया जाएगा। यही मंत्री चीफ जस्टिस लाहोटी से मिले और उन्हें कहा कि तमिलनाडु के इस एडिशनल जज की नियुक्ती को आगे न बढ़ाए जाने से सरकार का संकट बढ गया है। इसके बाद चीफ जस्टिस लाहोटी ने सरकार को एक पत्र लिखकर इस भ्रष्ट जज के टर्म को 1 साल और आगे बढ़ाए जाने की अनुमति दी थी। मुझे इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की सिफारिश के बावजूद कैसे इस एडिशनल जज का कार्यकाल एक साल और बढ गया जबकि उनके 6 बैचमेट जजों को स्थाई जज बना दिया गया था। इन एडिशनल जज को उनकी नियुक्ति को एक साल और बढ़ाए जाने का लेटर चीफ जस्टिस सबरवाल के कार्यकाल में सौंपा गया था।

अगले चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन के कार्यकाल में यह स्थाई जज नियुक्त हुए, लेकिन इस जज का ट्रांसफर दूसरे हाईकोर्ट में कर दिया गया था। मैं इन जारी जानकारियों को जोड़कर आपको बताना चाहता हूं कि इस दौरान सिस्टम किस तरह से काम कर रहा था। जबकि आईबी की रिपोर्ट को देखें तो उनके आधार पर इस जज को आगे नियुक्ति नहीं दी जा सकती थी।

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