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23 मई 2014

मेरे वकील साथियो से एक सवाल ,,

मेरे वकील साथियो से एक सवाल ,,,,,,,महिला संगठनो और महिलाओं को इन्साफ दिलाने वाली सरकारों से एक सवाल ,घरेलु हिंसा मामले में संरक्षण अधिकारी हिंसा मामले में न्याय दिलाने के लिए क़ानून के मुताबिक़ क्यों परिवाद पेश नहीं करते है ,,,देश में दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम के प्रावधानों की पालना आज तक विधिवत क्यों सुनिश्चित नहीं की गई है और देश भर में प्रशासन होते हुए ,क़ानून होते हुए खुलेआम दहेज़ लेनदेन की प्रथा क्यों चल रही है ,,इससे भी शर्मनाक बात यह है के एक पीड़ित महिला प्रताड़ित महिला महिला थाने में जाती है उसकी सुनवाई नहीं होती ,,फिर महिला अदालत में वकील के ज़रिये इस्तगाज़ा पेश करती है ,,अदालत दण्डप्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत महिला थाना पुलिस को मुक़दमा दर्ज करने के आदेश देती है ,,लेकिन दोस्तों परिवाद अदालत से थाने में जाने के बाद भी दो दो महीनों तक पुलिस अधिकारी मुक़दमा दर्ज नहीं करते है ,,इस मामले में वरिष्ठत पुलिस अधिकारी थानो के निरिक्षण का ढकोसला तो करते है लेकिन किसी लापरवाह हठधर्मी अधिकारी को सज़ा नहीं देते ,,,महिला सामाजिक संगठन ,,पत्रकार ,,इलेक्ट्रॉनिक मिडिया इन मामलों में खामोश रहते है ,,,वकील कंटेम्प्ट की कार्यवाही नहीं करते ,,अदालत से परिवाद जाने के बाद उस परिवाद पर प्रथम सुचना रिपोर्ट दर्ज की जाकर न्यायालय में चौबीस घंटे में पेश करने का नियम है लेकिन अदालते खुद इन मामलों में मॉनिटरिंग नहीं करती ,,दोषी थानाधिकारी जो डंके की चोट पर न्यायालय की अवमानना कर सीना फुलाकर घूमता है उसके खिलाफ कोई प्रसंज्ञान नहीं कोई मुक़दमा नहीं ,,,,,कोई सज़ा नहीं यह हठधर्मिता अदालतों से जाने वाले सभी परिवाद मामलो एक जैसा है ,,,वकील ,,वकीलों की संस्थाए ,,सामाजिक संगठन ज़िंदा मक्खी निगलने जैसे अन्याय के मामले में चुप्पी कैसे साधे है कोई मुझे बताएगा ,,,,,,,,,,,अख्तर

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