अस्थमा की बीमारी से प्रभावित रोगी को श्वास नली में सूजन होने से
सांस लेने में परेशानी का अनुभव होता है। फेफड़ों के रास्ते में रूकावट के
कारण रोगी बहुत बेचैनी महसूस करता है। शहरों में धुएं और वायु प्रदूषण के
कारण अस्थमा रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अगर समय रहते इसका समुचित
इलाज न किया गया तो इससे प्रभावित मरीज के लिए यह जानलेवा रोग साबित हो
सकता है।
यह एक आम बीमारी है। अस्थमा से प्रभावित मरीजे को सांस में लगातार घरघराहट की आवाज आती रहती है। यह बच्चों में पायी जाने वाली मुख्य बीमारियों में से एक है। वर्तमान में 23 करोड़ 50 लाख लोग अस्थमा से प्रभावित हैं।
2006 में इस बीमारी के बारे में जागरूकता लाने के लिए वार्षिक तौर पर ‘लिविंग विद अस्थमा’ नाम से एक पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस पोस्टर प्रतियोगिता में अमेरिका के 6 से लेकर 14 वर्ष के बच्चे शामिल थे। ये सभी बच्चे अस्थमा से प्रभावित थे। इस पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन ‘द अमेरिकन एकेडमी ऑफ एलर्जी, अस्थमा एंड इम्यूनोलॉजी’ (एएएएआई) और ‘द अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स’ ने किया था।
अस्थमा दो तरह का होता है। पहला एलर्जिक औऱ दूसरा नॉन एलर्जिक।
एलर्जिक अस्थमा का अटैक मुख्य तौर पर अटैक बच्चों और नौजवानों में होता है।
आम तौर पर 35 वर्ष के लोगों को यह बीमारी अटैक करती है। एलर्जिक अस्थमा
तभी अटैक करता है जब आप उन वस्तुओं के संपर्क में आते हैं जिनसे आपको
एलर्जी है।
इसी तरह से गैर-एलर्जिक यानी नॉन एलर्जिक अस्थमा का अटैक 35 वर्ष से
अधिक आयु यानी अधेड़ उम्र के लोगों में होता है। मुख्यत: यह अधेड़ उम्र के
लोगों को प्रभावित करता है। इसका प्रमुख कारण शारीरिक व्यायाम, ठंडी हवा और
सांस का इंफेक्शन है। सीधे तौर पर इसका एलर्जी से कोई संबंध नहीं है।
अस्थमा एक से दूसरे के शरीर में नहीं फैलता है।
यह फेफड़ों में हवा के पास होने वाली नली को पतला (संकीर्ण) कर देता है।
इससे प्रभावित मरीज को सांस लेने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है।
वर्तमान में 23 करोड़ 50 लाख लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं। यह बच्चों में पायी जाने वाली आम बीमारी है।
अधिकांश तौर पर अस्थमा से प्रभावित रोगियों की मौत निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में होता है।
अस्थमा के कारणों में सबसे प्रमुख एलर्जी को बढ़ाने वाले फैक्टर हैं।
दवाओं से अस्थमा को नियंत्रित किया जा सकता है। अस्थमा से बचाव से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
उचित प्रबंधन से अस्थमा से प्रभावित रोगी अच्छी जिंदगी जी सकते हैं।
अलग-अलग व्यक्तियों में अस्थमा का असर भिन्न होता है। कई लोगों को तुरंत-तुरंत सांस लेने में समस्या आती है तो कई लोगों को दूसरों की अपेक्षा कम समस्या आती है।
यह फेफड़ों में हवा के पास होने वाली नली को पतला (संकीर्ण) कर देता है।
इससे प्रभावित मरीज को सांस लेने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है।
वर्तमान में 23 करोड़ 50 लाख लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं। यह बच्चों में पायी जाने वाली आम बीमारी है।
अधिकांश तौर पर अस्थमा से प्रभावित रोगियों की मौत निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में होता है।
अस्थमा के कारणों में सबसे प्रमुख एलर्जी को बढ़ाने वाले फैक्टर हैं।
दवाओं से अस्थमा को नियंत्रित किया जा सकता है। अस्थमा से बचाव से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
उचित प्रबंधन से अस्थमा से प्रभावित रोगी अच्छी जिंदगी जी सकते हैं।
अलग-अलग व्यक्तियों में अस्थमा का असर भिन्न होता है। कई लोगों को तुरंत-तुरंत सांस लेने में समस्या आती है तो कई लोगों को दूसरों की अपेक्षा कम समस्या आती है।
किसी व्यक्ति को दिन में कई बार अस्थमा के कारण सांस लेने में परेशानी
होती है तो कई को सप्ताह में एक-आध बार इससे परेशानी होती है। कुछ लोगों
को शारीरिक श्रम के दौरान या रात में इससे ज्यादा परेशानी का अनुभव होता
है। अस्थमा के अटैक के दौरान ब्रोन्कियल ट्यूब का आकार बड़ा हो जाता है। इस
कारण से सांस की नली संकीर्ण हो जाती है और फेफड़ों पर इसका प्रभाव देखने
को मिलता है। अस्थमा के बार-बार अटैक से रोगी को अनिंद्रा, थकान, काम में
मन नहीं लगता है। अन्य पुराने रोगियों की अपेक्षा अस्थमा के रोगियों की मौत
कम होती है।
यह एक आम बीमारी है। सांस में लगातार घरघराहट की आवाज आती रहती है। यह
बच्चों में पायी जाने वाली मुख्य बीमारियों में से एक है। वर्तमान में 23
करोड़ 50 लाख लोग अस्थमा से प्रभावित हैं।
अस्थमा एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। इसका आय से कोई सीधा संबंध
नहीं है। इस बीमारी से प्रभावित देशों में विकसित और अविकसित सभी देश शामिल
है। वैसे अस्थमा से प्रभावित रोगियों में अधिकांश मौतें निम्न आय और
निम्न-मध्यम आय वाले देशों में होती है।
अस्थमा का अभी तक समुचित इलाज नहीं खोजा जा सका है। इस बीमारी से
प्रभावित लोग और उनके परिवार जिंदगी भर इससे जूझते रहते हैं। अस्थमा से
उनके कार्यों पर असर होता है।
अभी तक अस्थमा के बुनियादी कारणों का पता नहीं चल सका है। इसके प्रमुख
कारकों में प्रदूषित वातावरण, जेनेटिक यानी आनुवांशिकी और एलर्जी को
बढ़ाने वाले तत्व हैं। जैसे – घरों में बिछावन, कारपेट्स, फर्नीचर, पालतू
पशुओं के कारण धूल की समस्या।
दूसरे कारकों में आउटडोर एलर्जी कारकों में फूलों के पराग औऱ गीली मिट्टी।
तंबाकू औऱ सिगरेट का धुंआ
कार्यस्थलों पर ऐसे रासायनिक तत्व जिनसे एलर्जी होता है।
तंबाकू औऱ सिगरेट का धुंआ
कार्यस्थलों पर ऐसे रासायनिक तत्व जिनसे एलर्जी होता है।
वायु प्रदूषण।
अन्य कारकों में ठंडी हवा, अत्यंत भावनात्मक पल जैसे क्रोध या भय और
शारीरिक व्यायाम। यहां तक कि कुछ दवाओं से भी अस्थमा रोगियों को परेशानी
होती है। इसमें एस्पिरिन और अन्य नॉन-स्टेरॉयड एंटी इनफ्लेमेटरी ड्रग्स और
बीटा-ब्लॉकर्स (जिसका इस्तेमाल उच्च रक्त चाप, हार्ट और माइग्रेन के इलाज
के लिए किया जाता है) का नाम प्रमुख है। शहरीकरण के बढ़ने से अस्थमा की
बीमारी भी बढ़ी है। लेकिन अभी तक इस बीमारी के सही कारकों का पता नहीं चल
सका है।
हालांकि, अस्थमा का निश्चित इलाज अभी तक खोजा नहीं जा सका है। इस
बीमारी से प्रभावित लोग अगर सही तरीके से अपना खान-पान रखें तो वे जिंदगी
का भरपूर आनंद ले सकते हैं। शॉर्ट-टर्म मेडिकेशन से इस बीमारी में काफी लाभ
मिलता है। लंबे समय तक स्टेरॉयड दवा लेने से गंभीर अस्थमा को नियंत्रित
करने में मदद मिलती है।
जिन लोगों में लगातार अस्थमा के लक्षण प्रकट होते रहते हैं उन्हें
लंबे समय तक दवा लेनी चाहिए। इससे सूजन में मदद मिलती है और रोगी को आराम
पहुंचता है। सही मात्रा में दवा न लेने के कारण इस बीमारी के नियंत्रण में
परेशानी होती है।
सिर्फ दवा लेने से ही अस्थमा पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता है। उचित
प्रबंधन के द्वारा इस बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। और बीमारी से
प्रभावित लोग जिंदगी का भरपूर आनंद ले सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि
दवाओं के साथ-साथ अस्थमा के मरीज इस बीमारी से निपटने के लिए सही प्रबंधन
पर ध्यान दें।
हालांकि अस्थमा के पेशेंट की मौत क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज
(सीओपीडी) या अन्य क्रोनिक बीमारियों की तरह नहीं होती है। उचित मात्रा
में दवा न लेने और उपचार का पालन न करने के कारण मौत हो सकती है।
अस्थमा को रोकने और नियंत्रण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की रणनीति:
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अस्थमा को प्रमुख स्वास्थ्य समस्या के तौर
पर पहचान किया है। इस संगठन ने समन्वित अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को बढ़ावा
देने के लिए हरसंभव कदम उठाया है। इसका मुख्य उद्देश्य इस बीमारी को बढ़ने
से रोकना और अस्थमा से होने वाली मौतों को कम करना है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रोग्राम के प्रमुख उद्देश्य:
अस्थमा की भयावहता का निर्धारण करना। इसके प्रमुख कारणों की पहचान
करना और ट्रैंड्स की मॉनिटरिंग करना। इसके अलावा गरीब और वंचित आबादी पर
इसके प्रभाव का मूल्यांकन करना।
प्रमुख कारकों जैसे तंबाकू, सिगरेट स्मोकिंग को रोकना जिससे बच्चों की श्वास नली प्रभावित होती है। वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में इनडोर, आउटडोर और व्यावसायिक जोखिम पर ध्यान देना आदि।
दवाओं के उन्नत मानकों का निर्धारण करना औऱ स्वास्थ्य संबंधी प्रणाली पर समुचित ध्यान देना।
प्रमुख कारकों जैसे तंबाकू, सिगरेट स्मोकिंग को रोकना जिससे बच्चों की श्वास नली प्रभावित होती है। वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में इनडोर, आउटडोर और व्यावसायिक जोखिम पर ध्यान देना आदि।
दवाओं के उन्नत मानकों का निर्धारण करना औऱ स्वास्थ्य संबंधी प्रणाली पर समुचित ध्यान देना।
विश्व भर में इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना:
अस्थमा के खिलाफ वैश्विक प्रयासों को बढ़ावा देना। विश्व स्वास्थ्य
संगठन ने इसके लिए ‘द ग्लोबल एलायंस एगेंस्ट क्रोनिक रेस्पिरेटरी डिजीज’
(जीएआरडी) नाम से एक संगठन बनाया है जो इस बीमारी के बारे में जागरूकता
फैलाने में महती भूमिका निभा रहा है। इस संगठन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
विभिन्न देशों में कई गैर-सरकारी संगठन कार्य कर रहे हैं। यह निम्न और
निम्न-मध्यम आय वाले देशों पर स्थानीय जरूरतों के अनुसार विशेष ध्यान दे
रहा है।
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