आपका-अख्तर खान

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24 अप्रैल 2014

यह जिस्म तो किराये का घर है,

यह जिस्म तो किराये का घर है,
एक दिन खाली करना पड़ेगा...||
सांसे हो जाएँगी जब हमारी पूरी यहाँ...
रूह को तन से
अलविदा कहना पड़ेगा...।।
मौत कोई रिश्वत लेती नही कभी...
सारी दौलत को छोंड़ के जाना पड़ेगा...||
ना डर यूँ धूल के जरा से एहसास से तू...
एक दिन सबको मिट्टी में
मिलना पड़ेगा...
मत कर गुरुर किसी भी बात का ए
दोस्त...
तेरा क्या है...क्या साथ लेके
जाना पड़ेगा...||
इन हाथो से करोड़ो कमा ले भले तू यहाँ
खाली हाथ आया खाली हाथ
जाना पड़ेगा...||
ना भर यूँ जेबें अपनी बेईमानी की दौलत
से
कफ़न को बगैर जेब के
ही ओढ़ना पड़ेगा...||
यह ना सोच तेरे बगैर कुछ
नहीं होगा यहाँ ...
रोज़ यहाँ किसी को "आना"
तो किसी को "जाना" पड़ेगा.

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