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23 अप्रैल 2014

एक तीर ने पलटा था युद्ध का पासा, सैनिकों के सिर काटकर बनाई थी मीनार

पानीपत. ऐतिहासिक पानीपत के प्रथम युद्ध के 488 साल बीत गए। पहला युद्ध 1526 में लड़ा गया था। जबकि पानीपत की दूसरी लड़ाई 1556 में लड़ी गई। आज हम आपको दोनों युद्ध की पूरी कहानी बता रहे हैं।
इतिहास में पानीपत एक युद्धस्थल के रूप में जाना जाता था। वर्तमान में इसकी स्मृतियां ही पानीपत की पहचान हैं। 5 नवंबर 1556 को पानीपत की दूसरी लड़ाई हुई थी। यहां लड़े गए तीन युद्ध भारतीय राजनीति और शासन तंत्र में कई सारे बदलावों का कारण बने।
पानीपत की पहली लड़ाई 21 अप्रैल 1526 को लड़ी गई थी। इस युद्ध ने उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। इस युद्ध में काबुल के तैमूरी शासक जहीर उद्दीन मोहम्मद बाबर की सेना ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी की सेना को परास्त किया। इसके बाद हुई दूसरी लड़ाई, जो 1556 में हुई। यह युद्ध मुगलों और अफगानियों के बीच हुआ था। हुमायूं की मौत का फायदा उठाते हुए हेमू ने आगरा और दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। इसके जवाब में बैरम खान ने दिल्ली की तरफ रुख किया। 5 नवंबर को दोनों सेनाएं पानीपत में मिलीं। यहां दोनों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें हेमू की आंख में एक तीर लग गया और युद्ध का पासा पलट गया। उसकी मौत के बाद सैनिकों को पकड़कर उनके सिर काट दिए गए और एक स्तंभ बना दिया गया।
मुगलों और अफगानियों में लड़ी गई थी दूसरी लड़ाई
 
पानीपत की दूसरी लड़ाई मुगल साम्राज्य और अफगानियों के बीच हुई थी। यह लड़ाई राजा मुहम्मद आदिल शाह के सेनापति हेमू और अकबर के सेनापति और अभिभावक बैरम खान के बीच हुई। 24 जनवरी 1556 को मुगल शासक हुमायूं की मौत हो गई थी। उनकी मौत का कारण कोई युद्ध या साजिश नहीं थी बल्कि एक छोटी सी घटना थी। हुमायूं की मौत सीढ़ियों से उतरते समय हुई थी। सीढ़ी से उतरते समय उनका पैर फिसल गया जिसकी वजह से वो गिर गए। हुमायूं को गंभीर चोट लगी जो उनकी मौत का कारण बन गई।
 
हुमायूं की मौत के समय उनके बेटे अकबर की उम्र सिर्फ 13 साल थी। इतनी छोटी सी उम्र में सारे राज्य का कार्यभार अकबर के कंधों पर आ गया था। जिस समय अकबर ने कार्यभार संभाला तब अकबर के पास काबुल, कांधार और कुछ हिस्से पंजाब और दिल्ली के भी थे। उस समय अकबर अपने मुख्यमंत्री बैरम खान के साथ पंजाब में कैंपेन कर रहे थे। 14 फरवरी 1556 को कालानौर के एक बाग में अकबर को शासक के रूप में विराजमान किया गया।
अफगान के राजा मुहम्मद आदिल शाह की सेना के चीफ हेमू थे। आदिल शाह मुगलों को भारत से निष्कासित करना चाहते थे। वो चाहते थे कि भारत से मुगल साम्राज्य को खत्म कर दिया जाए और पूरे देश पर कब्जा कर लिया जाए। हुमायूं की मौत का फायदा उठाते हुए हेमू ने अक्टूबर में आगरा और दिल्ली पर बिना किसी मुश्किल के कब्जा कर लिया। कब्जा कर लेने के बाद हेमू वहां का राजा बन बैठा और खुद को राजा विक्रमादित्य की उपाधि दी।
 
इसके जवाब में बैरम खान ने दिल्ली की तरफ रुख किया। 5 नवंबर को  दोनों सेनाएं पानीपत में मिलीं और इनमें एक भयानक युद्ध हुआ। हेमू ने 1500 लड़ाके हाथियों की मदद से शुरुआती सफलता तो प्राप्त कर ली लेकिन इससे पहले कि हेमू आगे भी अपनी सफलता दर्ज कर पाता, उसकी आंख में एक तीर जा घुसा और युद्ध का पासा ही पलट गया।

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