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14 मार्च 2014

एक कुंवारी सती के चलते इस गांव में सदियों से नहीं देखी गई होली जलते हुए



धमतरी. धमतरी का गांव तेलीनसत्ती। यहां के बड़े बुजुर्गों ने गांव में कभी होलिका जलते नहीं देखा। लेकिन होली तो मनाते हैं। कुछ बुजुर्ग बताते हैं कि यहां 16 वीं शताब्दी से होलिका नहीं जली।
गांव के 85 साल के देवलाल साहू, बहुर साहू (82), व अन्य के मुताबिक 16 वीं शताब्दी में तेलीनसत्ती गांव में एक माल गुजार के सात बेटे व एक बेटी थी। बहन की शादी तय हुई। भाइयों के खेत का मेड़ रोज फूट जाता था। भाइयों ने एक रात अपने होने वाले दामाद को ही मेड़ में पाट दिया। उसकी बहन खेत गई। उसने मृत युवक की ऊंगली पकड़कर सात फेरे लिए और चिता में जलाकर सती हो गई। इसके बाद से यहां होलिका नहीं जली।
कुंवारी कन्या सती होने के बाद उसके सभी भाई गांव से भाग गए। तब से गांव वाले सती को पूजने लगे। गांव में उसकी प्रतिमा स्थापित कर छोटा सा मंदिर बनाया गया है। गांव का नाम भी इसी के चलते तेलीनसत्ती पड़ा और यह गांव के इष्टदेवी हैं। घटना के बाद से यहां होली जलती है न ही चिता। होली खेलकर खुशी जरूर मनाते हैं।
सौ साल से गांव में नहीं जली होलिका
डौंडी के ग्राम पुसावड़ में होलिका जलाने का रिवाज नहीं है। सौ साल पहले होलिका दहन के दौरान हुए हादसे से सबक लेते हुए गांव के बुजुर्गों ने होलिका दहन नहीं करने का निर्णय लिया था। होली खेलने के लिए कुछ विशेष नियम बनाए थे। इन नियमों सभी कर रहे हैं। सरपंच बनवाली राम चिराम, ग्रामीण चुन्नी लाल व अन्य ने बताया कि गांव के बुजुर्गों ने जो कारण और तर्क बाद अभी तक वे उन नियमों का पालन कर रहे हैं।
हादसा और होलिका बंद
ग्राम पुसावड़ के बुजुर्ग ग्राम पटेल हलालखोर चिराम (58) और ताजीराम चिराम (54) ने बताया कि करीब सौ साल पहले होलिका दहन के दिन गांव के लड़के ने किसान की बैलगाड़ी में आग लगा दी। इससे किसान की रोजी-रोटी छीन गई। किसान शांत रहा लेकिन अगले साल होलिका में उसने उस लड़के को ही जलाने की कोशिश की। गांव में तनाव था। उसके बाद गांववालों ने होलिका नहीं जलाने का फैसला लिया।
देवता होते हैं नाराज, नहीं मनाते होली
जिले का हट्टापाली ग्राम पंचायत के पांच गांवों में 150 साल से ग्रामीण होली नहीं मनाते हैं। यह पंचायत रायगढ़ से 80 किमी दूर है। गांववालों का मानना है कि होली खेलने से उनके देवता नाराज हो जाते हैं। इससे गांव में सूखा सहित कई प्राकृतिक विपदाएं आ पड़ती हैं।
बरमकेला ब्लाक के इस ग्राम पंचायत हट्टापाली के आश्रित ग्राम मंजूरपाली, छिंदपतेरा, जगदीशपुर, अमलीपाली और हट्टापाली में पिछले 100-150 सालों से होली नहीं खेली जा रही है, जबकि आसपास के करपी पंचायत, खम्हरिया, कालाखूंटा, करनपाली, झाल सहित अन्य पंचायतों और गांवों में होली मनाई जाती है।
'उन्होंने बुजुर्गों से सुना है कि करीब 150 साल पहले गांव में होली के दिन एक बाघ पहुंचा और वह बैगा को उठा ले गया। उस साल गांव में सूखा भी पड़ा। तब से होली नहीं मनाते।' -डमरूधर पटेल, ग्रामीण छिंदपतेरा

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