भीलवाड़ा. महात्मा गांधी जिला अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ की घोर लापरवाही सामने आई है। स्टाफ ने जीवित नवजात को मृत बताकर परिजनों को सौंप दिया। परिजनों ने दफनाने की तैयारी भी कर ली, लेकिन बच्चे को गांव ले जाते समय उसके जीवित होने का अहसास हुआ। स्टाफ से फिर चैकअप कराया तो उन्होंने भी उसे जीवित बताकर एनआईसीयू में भर्ती कर लिया। नवजात का उपचार जारी है। आमली (मांडलगढ़) निवासी पप्पू की 22 वर्षीय पत्नी गजरी ने गुरुवार रात करीब 10:34 बजे सात माह के बच्चे को जन्म दिया।
लेबर रूम के स्टाफ ने नवजात को मृत बताया और कपड़े में लपेटकर एक तरफ रख दिया। परिजनों को भी सूचना दी गई। करीब आधा घंटे बाद दादी प्रेमदेवी ने बच्चे को दफनाने के लिए गांव भेजने के लिए उसे गोद में उठाया तो बच्चे की आंखें हिलती दिखीं। गौर से देखा तो सांसें भी चल रही थी। दादी जोर से चिल्लाई तो स्टाफ मौके पर पहुंचा और बच्चे की जांच की। उसकी सांसें और धड़कन चल रही थी। इसके बाद उसे तुरंत एनआईसीयू में भर्ती किया गया।
भीलवाड़ा के सरकारी अस्पताल में घोर लापरवाही
लिखकर दिया- मृत है बच्चा, परिजनों से लिखवा लिया- शव प्राप्त किया
स्टाफ शोभा मैसी व कमला मेवाड़ा ने भर्ती टिकट पर मृत नवजात लिख दिया। जननी शिशु सुरक्षा योजना के फार्म पर भी मृत होने की एंट्री कर दी। परिजनों से भी फॉर्म पर यह लिखवा लिया कि मृत नवजात का शव प्राप्त कर लिया है। हालांकि बच्चे के जीवित होने पर एंट्री काट दी गई।
मृत घोषित करने में कुछ ज्यादा ही जल्दी कर दी : विशेषज्ञ
रिटायर्ड वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश छापरवाल ने बताया कि
नॉमली एक मिनट में बच्चे का दिल 120 से 140 बार धड़कता है। कई बार धड़कन और
सांसें इतनी कम रहती है कि बच्चे की जांच के बाद भी वह मृत दिखाई देता है।
बच्चे को बाहर रखने व ऑक्सीजन मिलने पर हार्मोंस निकलते हैं। इससे धड़कन
बढ़ जाती है। जो भी नवजात है, उसे तुरंत मृत घोषित नहीं करना चाहिए। केवल
नर्सेज के भरोसे नहीं रह सकते, इसमें डॉक्टर की राय जरूरी है।
स्टाफ ने बच्चा मृत बताया था। हमने भी मृत मान लिया। बच्चा आधे घंटे
तक ऐसे ही पड़ा रहा। मैंने शव समझकर उसे गांव में भिजवाने के लिए हाथों में
उठाया तो उसके जीवित होने का अहसास हुआ। अगर थोड़ी देर हो जाती तो शायद
बच्चा वास्तव में ही मर जाता। -प्रेमदेवी गुर्जर, नवजात की दादी
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