आपका-अख्तर खान

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16 मार्च 2014

निश्चित तोर पर हम आने वाले कल में आदर्श होली भाईचारे सद्भावना की पवित्र होली मनाएंगे और इस माहोल में माँ बहनों को भी लगेगा के हम दुश्मनों में नहीं परिवार में सुरक्षित है

दोस्तों आज थोड़ी तबियत अलील थी लेकिन फिर भी जो दोस्त मुझे ईद वगेरा की  मुबारकबाद देने आते है उन्हें तो मुझे भी होली मुबारक कहना था सो में घर से निकला ,,कार के शीशे चढ़ा लिए ,,गली से निकलते निकलते एक दर्जन से भी ज़यादा बेवड़े शोरशराबा करते हुए दिखे ,,कुछ टकराते टकराते बचे ,,कुछ बेहोश पढ़े हुए थे ,,सड़क पार की तो कुछ लड़कों ने एक भाभीजी को घेर रखा था और बुरा ना मानो होली है कहकर उनके जिस्म के हर जगह रंग लगाने का कॉम्पिटिशन था बेचारी भाभी जी कसमसाती हुई भाग रही थी और यह होली मुबारक  वाले लोग उनसे अभद्र होली कर रहे थे ,,,,,थोडा आगे बढ़ा एक बच्ची आगे आगे दो लड़के पीछे पीछे और आखिर उसे इन दोनों ने दबोच लिया पीछे से दो लड़के और आ गए लड़की को पटखनी दी और किस तरह से रंग लगाया होगा में तो बताने की स्थिति में भी नहीं हूँ आप ही समझ गए होंगे ,,,आगे चला तो ढोल मंजीरे के साथ टोलियाँ थीं कुछ शराब पिए हुए थे तो कुछ ने भंग पी रखी थी कई लोगों ने कार पर कलर से हमला क्या लेकिन दरवाज़े बंद थे इसलिए बच गए ,,,,,,,रास्ते भर होली की नहीं शराबियों और भांग खोरों की हुड़दंग अधिकतम लोगों को महिलाओं की तलाश दिख रही थी और जान ना पहचान उनपर लोग जबरन रंग लगाने की कोशिशों में थे कई जगह सुखी होली थी केवल तिलक लगाया जा रहा था ,,,रिश्तों की मर्यादा में चरण छू कर केवल गुलाल का तिलक कर या फिर बिना हाथ लगाये गुलाल दूर से छिड़क कर होली है का मज़ा लिया जा रहा था ,,व्यंजन बने थे वोह  खाये जा रहे थे बनाये जा रहे थे ,,,,,,,कई जगह जिन लोगों को दारु चढ़ गई थी वोह गली गलोच बदतमीज़ी करते नज़र आ रहे थे  उनकी घर की ओरतें उन्हें पकड़ कर ले जाना चाहती थी तो उनपर भी दूसरे लोग रंग लगा रहे थे और यह दारूडीए अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए अपने घर की ओरतों के साथ गाली गलोंच और धक्का मुक्की कर रहे थे अजीब मंज़र था खेर में अपने मित्र के पास पहुंचा तो  देखा दरवाज़ा बाहर से बंद था ताला लगा था ,,में समझा शायद यह जनाब परिवार सहित बाहर गए है फिर भी मेने सोचा चलो इतनी  दूर आये है तो फोन पर तो बात कर ले ,,,फोन किया होली मुबारक दी तो मेरे इस मित्र को जब पता चला के में उसके घर के बाहर हूँ तो उसने कहा के होली के हुड़दंगियों के डर से मैन गेट पर तो ताला है आप पिछले दरवाज़े से आजाइए ,,में पिछले दरवाज़े से इन जनाब के यहाँ गया तो बस पकवान बन रहे थे ,,,हल्के गुलाल के टीके लगे थे और सब बंद खिड़कियों में से होली का माहोल देख रहे थे ,,,मेने मेरे मित्र और उसके परिजनों से कारन पूंछा तो वोह कहने लगे भाई हम तो बाहर के है हमारे यहाँ होली तहज़ीब के दायरे में खुशी मनाने के लिए रिश्तों की लाज रखने के लये बनाई जाती है यूँ बेहूदगी के लिए शराबियों के लिए और अभद्रता या फिर ओरतों को अपनी गंदी विचारधारा का शिकार बनाने के लिए नहीं ,,हमारी तो बस बंद मकान की यही होली है उन्होंने मुझे रोका नाश्ता कराया होली की बधाई हुई और में फिर घर आ गया लेकिन सोचता रहा कितना फ़र्क़ है आत्मिक होली और सड़कछाप होली ,,सोचता रहा धर्म और मज़हब तो होली को कितना पवित्र और पूजनीय रूप देते है लेकिन शराब और भांग  के नशेबाज़ ,,,,हवसखोर ,ओरत को रिश्तों की मर्यादाओं से अलग कर सिर्फ उपभोग की वस्तु समझने वालों ने इस होली और इसके उदेश्य को कितना अपवित्र कर दिया है ,,,बुझे मन से ,,,,,,लरज़ते कांपते हाथों से मुझे यह पोस्ट लिखने को मजबूर होना पढ़ा है लेकिन मुझे एक अच्छी बहतर प्यार भरी अपनेपन भाईचारे और सद्भावना की तस्वीर भी इस होली के त्यौहार में देखने को मिली है जो हमारे बुज़ुर्ग अगर लगातार युवाओं को संस्कारित करते रहेंगे और मर्यादाओं का पाठ पढ़ाते रहेंगे तो निश्चित तोर पर हम आने वाले कल में आदर्श होली भाईचारे सद्भावना की पवित्र होली मनाएंगे और इस माहोल में माँ बहनों को भी लगेगा के हम दुश्मनों में नहीं परिवार में सुरक्षित है ,,,,अख्तर  खान अकेला कोटा राजस्थान

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