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17 मार्च 2014

157 चुनाव हारने के बाद अब मोदी को चुनौती देंगे पद्माराजन

कोझिकोड: क्या आप उस शख्स से मिलना चाहेंगे जो अब तक किसी चुनाव में नहीं जीता, बावजूद इसके वह हर बार बड़े और लोकप्रिय नेताओं को उनके राज्यों में जाकर चुनौती देता है। देश के अधिकांश चुनावों में हिस्सा लेने के लिए डॉ के. पद्माराजन को लिम्का बुक ऑफ रिकाडर्स में शामिल किया गया है। बीते 25 सालों से भारत के लोकतंत्र उत्सव में हिस्सा ले रहे के. पद्माराजन 157 चुनावों में मिली हार को अपनी तरह का अनूठा सम्मान मानते हैं।
 
चुनावों में अब तक 12 लाख की जमापूंजी गंवा चुके पद्माराजन पेशे से होम्योपैथिक डॉक्टर हैं। वे अब बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने जा रहे हैं। 17 अप्रैल को वाराणसी पहुंचकर वे अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे। लेकिन इससे पहले हर चुनाव की तरह वे सबरीमाला के दर्शन करेंगे। और उससे भी पहले वे अपनी स्थानीय सीट धरमपुरी (तमिलनाडु) से चुनाव में अपनी उम्मीदवारी के लिए ताल ठोकेंगे।
प्रणब मुखर्जी, मनमोहन को भी दी चुनौतीः 
बतौर निर्दलीय उम्मीदवार पद्माराजन ने बीते 25 सालों में देश के 2 राष्ट्रपति, 3 प्रधानमंत्री, 11 मुख्यमंत्री, 13 केंद्रीय मंत्रियों और 14  राज्यमंत्रियों के खिलाफ चुनाव में परचा दाखिल किया है। अपनी बुलंद आवाज और हंसमुख चेहरे से सभाओं में भीड़ खींचने में माहिर पद्माराजन ने देश के तीन प्रधानमंत्रियों पीवी नरसिंहराव, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ मनमोहन सिंह के साथ-साथ एके एंटनी, एम करुणानिधि, जयललिता, वाईएस राजशेखर रेड्डी के अलावा पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन और मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी उनके राज्यों में जाकर चुनावी चुनौती दी है। 
 
ताकि देश समझें अपने वोट की ताकतः 
लगातार 157 चुनाव हारने के बाद भी चुनाव क्यों लड़ रहे हैं, पूछने पर पद्माराजन कहते हैं कि मेरा हर चुनाव में खड़ा होना देश की जनता को मिले उस अधिकार को प्रदर्शित करता है, जिसके तहत वह बड़े से बड़े व्यक्ति को मत-युद्ध के लिए चुनौती दे सकता है। लोगों को उनके वोट देने के अधिकार और उसकी ताकत का अंदाजा होना चाहिए खासकर तब, जब सक्षम व्यक्ति ही चुनावों में हिस्सा न ले रहा हो।
अपहरण तक हुआ, फिर भी नहीं मानेः
डॉ पद्माराजन पहली बार 1988 में तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में मेत्तूर सीट से सीपीएम के एम. श्रीरंगन के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खड़े हुए थे। तबसे लेकर अब तक उनकी चुनावी यात्रा जारी है। लेकिन चुनावों में कई छुपे खतरे भी होते हैं, यह उन्हें तब पता चला जब 1991 में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव के खिलाफ नांदयाल उप चुनाव में खड़े होने की ठानी।
 
वे बताते हैं कि नामांकन दाखिल करने के पहले ही दिन जब वे राव के खिलाफ नामांकन दाखिल करने करनूल कलेक्ट्रेट जा रहे थे, तभी कुछ लोग, जो शायद कांग्रेस कार्यकर्त्ता थे, आए और उनका अपहरण कर किसी अज्ञात जगह ले गए। उस समय कांग्रेस किसी भी तरह से राव की जीत चाहती थी और मैं इसमें बाधक बन सकता था। मैं ईश्वर की दया के चलते किसी तरह बच सका वो भी तब, जब बीजेपी उम्मीदवार ने राव के खिलाफ नामांकन दाखिल कर दिया। उस दिन अहसास हुआ कि भारत में चुनाव और वोट की ताकत क्या अहमियत रखते हैं।

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