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26 फ़रवरी 2014

चुनावी सर्वे की साख पर सवाल: चुनाव आयोग लगा सकता है बैन


चुनावी सर्वे की साख पर सवाल: चुनाव आयोग लगा सकता है बैन
 
नई दिल्ली. टीवी चैनल द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन में सर्वे एजेंसियों को बेनकाब करने के दावे के बाद  सर्वे की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। कांग्रेस पार्टी की ओर से नेताओं का एक दल बुधवार को चुनाव आयोग से मुलाकात कर रहा है। संभावना जताई जा रही है कि चुनाव आयोग इन एजेंसियों पर कड़ी कार्रवाई कर सकता है। 
हाल ही में एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया है कि पैसे देकर चुनावी सर्वे के नतीजों में धांधली करवाई जा सकती है।
 
पहले भी उठते रहे हैं सवाल
चुनावी सर्वे करने वाली एजेंसियों की साख पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं, लेकिन ताज़ा खुलासे ने इस बहस को फिर से तेज कर दिया है कि आखिर इन एजेंसियों के सर्वे का कितना असर होता है। चुनाव आयोग पहले से ही चुनावी सर्वे करने वाली एजेंसियों के कामकाज पर विचार कर रहा है। इसी सिलसिले में कुछ समय पहले आयोग ने सरकार और राजनीतिक पार्टियों को चिट्ठी लिखकर उनकी राय मांगी थी। इस चिट्ठी के जवाब में किसने क्या कहा, जानिए:
 
अटॉर्नी जनरल भी दे चुके हैं प्रतिबंध लगाने की सलाह
 
अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने सरकार को सलाह दी थी कि चुनाव या जनमत सर्वेक्षणों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। 
 
चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी 
 
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने  4 नवंबर 2013 को कहा था कि चुनाव आयोग चुनाव सर्वे पर तभी प्रतिबंध लगा सकता है जब इस संबंध में कोई कानून बनाया जाए। उन्होंने कहा कि चुनाव सर्वेक्षण, अगर वैज्ञानिक और ईमानदार हों तो यह बुरा नहीं है। 
 
 
कांग्रेस की राय
 
कांग्रेस पार्टी के नेता राशिद अल्वी ने कहा था कि ओपिनियन पोल पर पाबंदी लगाने का फैसला निर्वाचन आयोग का है और हमने इसका केवल समर्थन किया है। ओपिनियन पोल में अलग-अलग रूझान बताते हैं जिससे भ्रम की स्थिति पैदा होती है और लोग गुमराह होते हैं। सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर इस मसले को देखना चाहिए।
वहीं, दिग्विजय सिंह ने कहा था कि चुनाव के दौरान जनमत सर्वेक्षण वास्तव में वैज्ञानिक नहीं हैं, क्योंकि इसमें पारदर्शिता बिलकुल नहीं होती है। दिग्विजय सिंह के मुताबिक पैसे देकर कोई भी सर्वेक्षण करा सकता है। सर्वेक्षकों का भी कोई नियमन नहीं है। इसे मजाक बना दिया गया है। 
 
बीजेपी की राय 
 
बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने 5 नवंबर, 2013 को जनमत सर्वेक्षण पर प्रतिबंध लगाने के कांग्रेस के रूख को बचकाना करार दिया था। मोदी ने कहा था कि अगर कोर्ट उसका (कांग्रेस) समर्थन नहीं करती हैं तब वह कह सकती है कि अदालतों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा दिया जाए। इस पार्टी ने अदालत के असहज फैसले के जवाब में आपातकाल लगाया था। वहीं, बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने कहा था कि चुनाव सर्वेक्षणों या जनमत सर्वेक्षणों पर प्रतिबंध लगाना न तो संवैधानिक होगा और न ही कानूनी दृष्टि से उचित होगा, क्योंकि यह वाक या भाषण की स्वतंत्रता के अधिकार का ही अंग है। किसी के मांग करने से ही इस पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए।
 
अन्य दलों  की राय
 
कांग्रेस की लाइन पर बसपा, सपा, द्रमुक और अकाली दल भी चुनाव सर्वेक्षणों पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में रही हैं। यूपीए सरकार में शामिल एनसीपी ने प्रतिबंध का विरोध किया था, लेकिन नियामक बनाने की बात कही है। इसी तरह माकपा, भाकपा ने भी नियामक बनाने की बात कही है।
 
क्या कहते हैं कानून के जानकार
 
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के मुताबकि उपलब्ध प्रौद्योगिकी एवं इंटरनेट जनमत सर्वेक्षण के माध्यम के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। उनके मुताबिक चुनाव आयोग की तर्ज पर जनमत सर्वेक्षण आयोग की जरूरत है। यदि पांच फीसदी लोग आयोग के पास जाकर किसी कानून की मांग करते हैं तब जनमत सर्वेक्षण होना चाहिए।

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