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22 फ़रवरी 2014

एक गांव, जहां की जिंदगी है नाव, बच्चे स्कूल जाते है नाव चलाकर


धमतरी. जिंदगी के संघर्ष को अगर करीब से देखना-समझना है तो ग्राम सिंघोला का सफर जरूरी है। गांव के चारों ओर लबालब पानी। आने-जाने के लिए सड़क को तरसते लोग। पढ़ाई, खरीदारी, इलाज...हर परिस्थिति में नाव के सहारे अपनी जीवन की नैय्या पार लगाने को मजबूर लोग। फिर भी हौसले बुलंद।  इतने कि पचास साल से जीवन जीने का यही तरीका।
सिंघोला गंगरेल बांध का डूब प्रभावित गांव है। पहाड़ी पर बसा है। धमतरी से दूरी है करीब 65 किमी। पक्के-कच्चे रास्तों से होकर गांव का सफर तय होता है। फिर नाव के सहारे ही गांव तक पहुंचा जा सकता है। यहां सात परिवार रहते हैं। गांव में बिजली भी है। पर नाव के माध्यम से ही ग्रामीण हर उस काम को कर रहे जो जीने के लिए जरूरी है। छोटे-छोटे बच्चे नाव चलाकर स्कूल आते-जाते हैं। हाट बाजार, राशन, रोजी मजदूरी के लिए महिलाओं को भी नाव से ही सफर करना पड़ता है। नाव-जाल लेकर दिन भर मछली पकडऩा यहां के ग्रामीणों का काम है और यही जीवन-यापन का प्रमुख जरिया भी है।

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