सिंघोला गंगरेल बांध का डूब प्रभावित गांव है। पहाड़ी पर बसा है। धमतरी से दूरी है करीब 65 किमी। पक्के-कच्चे रास्तों से होकर गांव का सफर तय होता है। फिर नाव के सहारे ही गांव तक पहुंचा जा सकता है। यहां सात परिवार रहते हैं। गांव में बिजली भी है। पर नाव के माध्यम से ही ग्रामीण हर उस काम को कर रहे जो जीने के लिए जरूरी है। छोटे-छोटे बच्चे नाव चलाकर स्कूल आते-जाते हैं। हाट बाजार, राशन, रोजी मजदूरी के लिए महिलाओं को भी नाव से ही सफर करना पड़ता है। नाव-जाल लेकर दिन भर मछली पकडऩा यहां के ग्रामीणों का काम है और यही जीवन-यापन का प्रमुख जरिया भी है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
22 फ़रवरी 2014
एक गांव, जहां की जिंदगी है नाव, बच्चे स्कूल जाते है नाव चलाकर
सिंघोला गंगरेल बांध का डूब प्रभावित गांव है। पहाड़ी पर बसा है। धमतरी से दूरी है करीब 65 किमी। पक्के-कच्चे रास्तों से होकर गांव का सफर तय होता है। फिर नाव के सहारे ही गांव तक पहुंचा जा सकता है। यहां सात परिवार रहते हैं। गांव में बिजली भी है। पर नाव के माध्यम से ही ग्रामीण हर उस काम को कर रहे जो जीने के लिए जरूरी है। छोटे-छोटे बच्चे नाव चलाकर स्कूल आते-जाते हैं। हाट बाजार, राशन, रोजी मजदूरी के लिए महिलाओं को भी नाव से ही सफर करना पड़ता है। नाव-जाल लेकर दिन भर मछली पकडऩा यहां के ग्रामीणों का काम है और यही जीवन-यापन का प्रमुख जरिया भी है।
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