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23 फ़रवरी 2014

खानापूर्तिः राजीव हत्याकांड में 100 करोड़ खर्च, फिर भी खत्म नहीं हुई जांच


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खानापूर्तिः राजीव हत्याकांड में 100 करोड़ खर्च, फिर भी खत्म नहीं हुई जांच
नई दिल्ली. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे जेल में हैं। साजिश के मुख्य किरदार मारे जा चुके हैं। लेकिन जांच खत्म नहीं हुई है। 1998 में मल्टी डिसिप्लिनरी मॉनिटरिंग एजेंसी (एमडीएमए) बनाई गई थी ताकि साजिश का खुलासा हो सके। 20 से ज्यादा विदेश दौरों और जांच में 100 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी कोई नहीं जानता कि इस एजेंसी ने अब तक क्या किया?
1998 में एमडीएमए बनी थी। 40 अधिकारी थे। जॉइंट डायरेक्टर के नेतृत्व में एक डीआईजी और दो एसपी भी इसमें थे। सीजीओ कॉम्प्लेक्स में सीबीआई हेडक्वार्टर के दसवें माले पर एजेंसी का दफ्तर है। सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों को भी नहीं पता कि अब तक एमडीएमए ने क्या किया है या क्या कर रही है।
कार्तिकेयन के नेतृत्व वाले विशेष जांच दल ने यह खुलासा किया था कि राजीव गांधी की हत्या में लिट्टे का हाथ था। उन्हें भी नहीं पता कि जब सीबीआई ने काम पूरा कर लिया है तो एमडीएमए कर क्या रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि 2009 में श्रीलंकाई सेना ने कुमारन सेल्वसरा पद्मनाथन उर्फ केपी को गिरफ्तार कर लिया था। उसके बाद एमडीएमए के लिए जांच के लिए कुछ रह नहीं गया है।
जांचकर्ताओं का दावा है कि तीन लोगों को इस साजिश की जानकारी थी। लिट्टे के प्रमुख वी. प्रभाकरन और उनकी खुफिया विंग के प्रमुख पोट्टु अम्मान को 2008-09 में श्रीलंकाई सेना ने ढेर कर दिया था। लिट्टे के मुख्य फाइनेंसर केपी की तलाश में ही एमडीएमए ने दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों, यूरोप और न्यूजीलैंड की यात्रा की है।
नहीं मिला चंद्रास्वामी के खिलाफ कोई सुराग
एमडीएमए ने केपी और चंद्रास्वामी के संबंधों का पता लगाने के लिए 20 से ज्यादा देशों को लेटर रोगेटरी (एलआर) भेजे थे। इनमें भी सिर्फ छह जवाब मिले हैं, वह भी किसी काम के नहीं है। एमडीएमए केपी और चंद्रास्वामी के बैंक खातों की जानकारी चाहती थी। एमडीएमए की जांच की मौजूदा स्थिति का खुलासा पिछले साल अक्टूबर में हुआ था। जब सीबीआई ने चेन्नई की टाडा कोर्ट को बताया था कि एमडीएमए की जांच जारी है।

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