दोस्तों कल तेईस सितम्बर का दिन कोटा के विकास और सोंदर्यकरण का एतिहासिक मिसाली दिन होगा ..जी हां दोस्तों कल राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोटा में कोटा के विकास और लोह पुरुष शान्ति कुमार धारीवाल के ....मेरा कोटा विकसित कोटा खुबसूरत कोटा ...के सपनों को साकार करेंगे ..शांति कुमार धारीवाल ने नगर विकास न्यास के चेयरमेन रविन्द्र त्यागी को कोटा के विकास के इस रथ में अपना सारथि बनाया है और इस सपने को असम्भव सपने को साकार कर दिखाया है ..आज कोटा में शान्ति कुमार धारीवाल और नगर विकास न्यास रविंदर त्यागी के तालमेल से कोटा में बच्चो के लिए खुबसूरत अभेडा महल ...धार्मिक लोगों के लियें करनी माता ..छत्रविलास उद्ध्यान ..नागाजी का बाग़ ...जॉय ट्रेन ..सात अजूबे ...किशोर सागर में बोटिंग का मजा ..कोटा शहर की सडको का चमाचम नज़र ..सम्पर्क सड़के ....बाइपास ..छोटे रास्ते ..बस्तियों तक पहुंचने के एप्रोच रोड ...विद्ध्यार्थी सर्किल पर चमचमाता महाभारत का घटोत्कच की हत्या का द्रश्य लोगों को लुभाता है ..तो ऐतिहासिक धार्मिक मन्दिर मथुराधीश जी के पहले टिपटा में एक बढ़ा सिंघ्द्वार धार्मिक लोगों के लियें ख़ुशी का द्वार बनकर सामने आता है ...शांति कुमार धारीवाल के प्रयासों से सभी समाजो को भूखंड आवंटित किये गए सभी समाजो की जरूरतों को पूरा करने के लियें हर सम्भव प्रयास करते हुए उनके बहुमुखी विकास के लियें कार्य किये गए ..कोटा में मुस्लिम समाज के लियें जन्ग्लिशाह बाबा सम्पत्ति पर एक करोड़ आठ लाख की कीमत से मुस्लिम समाज के लिए नए महफिल खाने का निर्माण ...आधा दर्जन सामुदायिक भवन ..कब्रिस्तानों की बाउंड्री और सोंद्र्य्करण ..स्टेशन पर नये कब्रिस्तान का आवंटन ..मुस्लिम होस्टल का शिलान्यास ...मुस्लिम बस्तियों में नाली पटान और विकास कार्य महत्वपूर्ण है अब अगर मुस्लिम होस्टल का निर्माण शुरू हो जाए ....जन्ग्लिशाह महफिल खाना मेंतिनेस खर्च पर आम मुसलमानों को देने की पाबंदी लगा दी जाए ...मेडिकल कोलेज पचास बीघा का कब्रिस्तान पूर्व घोषणा के तहत वक्फ के रिकोर्ड में दर्ज करवा दिया जाए ..स्टेशन में जो आवंटित कब्रिस्तान जमीन का विवाद है उसे निस्तारित कर शीघ्र जमीन दे दी जाए तो मुस्लिम समाज उनका आभारी रहेगा ..धारीवाल ने मुस्लिम समाज को मदरसों और सामाजिक समारोह के लियें भी भूखंड आवंटित किये है ...कोटा ही नहीं राजस्थान ही नहीं पुरे हिन्दुस्तान में शान्ति कुमार धारीवाल के कार्यकाल में मुस्लिम समाज के सार्वजनिक कल्याण और हितों के लियें ऐतिहासिक काम हुए है बस एक अल्फ्लाह्वेलफेयर सोसाइटी को भी टोकन मनी पर भूखंड आवंटन का मसला हल हो जाए तो इस संस्था के माध्यमसे मुस्लिम समाज के कल्याणकारी और शेक्षणिक कार्यों के द्वार खुल जायेंगे ...कोटा में ट्रिपल आई टी का शिलान्यास ....सम्पर्क पुल ..सहित अरबों रूपये के काम इस बात का सुबूत है के शान्ति कुमार धारीवाल ने कोटा के वोटर्स और कोटा की जनता का ऋण उतार कर बोनस के रूप में उन्हें बहुत कुछ अतिरिक्त दिया है ...कोटा के मुस्लिमों की चाहत है के शांति कुमार धारीवाल अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर लाडपुरा सहित एक और विधानसभा सीट मुस्लिम प्रत्याक्षी को दिलवा दे तो परिणाम सकारात्मक होंगे .....शान्तिकुमार धारीवाल का विधानसभा में तो विपक्ष को मुंह तोड़ जवाब देकर शांति कुमार धारीवाल ने अपना आक्रामक और कोंग्रेस के बचाव की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जबकि राजस्थान की मेट्रो ट्रेन जेसी ड्रीम योजनाओं को वक्त से पहले अंतिम रूप देकर राजस्थान में एक मात्र तेजतर्रार जो कहा वोह किया का नारा देते हुए खुद को विकास पुरुष साबित किया है ..इसी तरह से कोटा में जो विकास की भूख थी ..कोटा में जो मनोरंजन और सोंद्र्य्करण की कमी थी उसे भी शान्ति कुमार धारीवाल ने जनता की चाहत के हिसाब से उन्हें पुनर्वास के नाम पर बहतरीन मुआवजा देकर पूरा किया है ..रामपुरा बाज़ार के व्यवसायी जो अलग थलग पढ़ गए थे उन तक पहुंचने के लियें एक चोडी सड़क का निर्माण शान्ति कुमार धारीवाल के अलावा किसी भी नेता या मंत्री के लियें किया जाना असम्भव था मुख्यमंत्री अशोक गहलोत .....शांति कुमार धारीवाल .रविन्द्र त्यागी का आभार बधाई ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
21 सितंबर 2013
दोस्तों कल तेईस सितम्बर का दिन कोटा के विकास और सोंदर्यकरण का एतिहासिक मिसाली दिन होगा ..जी हां दोस्तों कल राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोटा में कोटा के विकास और लोह पुरुष शान्ति कुमार धारीवाल के ....मेरा कोटा विकसित कोटा खुबसूरत कोटा ...के सपनों को साकार करेंगे
हम तो आयना है जेसा दागदार चेहरा है वेसा ही चेहरा दिखाएँगे
हम तो आयना है
जेसा दागदार चेहरा है
वेसा ही चेहरा दिखाएँगे
तुम्हे पसंद ना हो
तो खुद तुम
सामने से हट जाओ ..
पसंद ना हो
तुम्हे मेरी सच्चाई का यह अक्स
उठाओ पत्थर
करदो मेरे टुकड़े टुकड़े
में तो आयना हूँ
जो सच है
बस वही
बस वही
हु बहु दिखाउंगा ...
में तो आयना हूँ .....
मेरी साफ गोई बुरी तो है
लेकिन
जरा दिल से तो पूंछो
इसमें सच्चाई और सच्चाई है
चाहो तो मेरे इस सच
मेरी इस आयने को तोड़ दो
चाहो तो
जो सच्चाई तुम्हे
नज़र आई है
उसमे कुछ बदलाव कर
खुद को जिंदगी के लायक बना लो
चाहो तो पत्थर उठा कर मुझे तोड़ दो
चाहो तो खुद को
संवारकर खुदी को इस कदर बुलंद कर लो
खुडा खुद तुमसे पूंछे
बता तेरी रजा क्या है
में तो आयना हूँ
जो सच है वही बताउंगा ..
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
जेसा दागदार चेहरा है
वेसा ही चेहरा दिखाएँगे
तुम्हे पसंद ना हो
तो खुद तुम
सामने से हट जाओ ..
पसंद ना हो
तुम्हे मेरी सच्चाई का यह अक्स
उठाओ पत्थर
करदो मेरे टुकड़े टुकड़े
में तो आयना हूँ
जो सच है
बस वही
बस वही
हु बहु दिखाउंगा ...
में तो आयना हूँ .....
मेरी साफ गोई बुरी तो है
लेकिन
जरा दिल से तो पूंछो
इसमें सच्चाई और सच्चाई है
चाहो तो मेरे इस सच
मेरी इस आयने को तोड़ दो
चाहो तो
जो सच्चाई तुम्हे
नज़र आई है
उसमे कुछ बदलाव कर
खुद को जिंदगी के लायक बना लो
चाहो तो पत्थर उठा कर मुझे तोड़ दो
चाहो तो खुद को
संवारकर खुदी को इस कदर बुलंद कर लो
खुडा खुद तुमसे पूंछे
बता तेरी रजा क्या है
में तो आयना हूँ
जो सच है वही बताउंगा ..
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
विश्व शांति दिवस
इतिहास
वर्ष 1982 से शुरू होकर 2001 तक सितम्बर महीने का तीसरा मंगलवार 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' या 'विश्व शांति दिवस' के लिए चुना जाता था, लेकिन वर्ष 2002 से इसके लिए 21 सितम्बर का दिन घोषित कर दिया गया। वर्ष 2012 के 'विश्व शांति दिवस' की थीम थी- "धारणीय भविष्य के लिए धारणीय शांति"।[1]उद्देश्य
सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना आज संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही यूएन का जन्म हुआ है। संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में अमन की अहमियत का प्रचार-प्रसार करना बेहद जरूरी और प्रासंगिक हो गया है। इसलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ, उसकी तमाम संस्थाएँ, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी और राष्ट्रीय सरकारें प्रतिवर्ष 21 सितम्बर को 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' का आयोजन करती हैं। शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तीन दशक पहले यह दिन सभी देशों और उनके निवासियों में शांतिपूर्ण विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित किया था।भारत और विश्व शांति
पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने विश्व में शांति और अमन स्थापित करने के लिए पाँच मूल मंत्र दिए थे, इन्हें 'पंचशील के सिद्धांत' भी कहा जाता है। यह पंचसूत्र, जिसे 'पंचशील' भी कहते हैं, मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के पाँच आधारभूत सिद्धांत हैं।[1] इसके अंतर्गत निम्नलिखित पाँच सिद्धांत निहित हैं-- एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
- एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही न करना।
- एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना।
- समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।
- सफ़ेद कबूतर उड़ाना
लेकर चलें हम पैगाम भाईचारे का,
ताकि व्यर्थ खून न बहे किसी वतन के रखवाले का।
वर्तमान परिवेश
आज कई लोगों का मानना है कि विश्व शांति को सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवादी आर्थिक और राजनीतिक चाल से है। विकसित देश युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं, ताकि उनके सैन्य साजो-समान बिक सकें। यह एक ऐसा कड़वा सच है, जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता। आज सैन्य साजो-सामान उद्योग विश्व में बड़े उद्योग के तौर पर उभरा है। आतंकवाद को अलग-अलग स्तर पर फैलाकर विकसित देश इससे निपटने के हथियार बेचते हैं और इसके जरिये अकूत संपत्ति जमा करते हैं। हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान, ईरान और इराक जैसे देशों में हुए युद्धों को विशेषज्ञ हथियार माफियाओं के लिए एक फायदे का मेला मानते हैं। उनके अनुसार दुनिया में भय और आतंक का माहौल खड़ा करके ही सैन्य सामान बेचने वाले देश अपनी चांदी कर रहे हैं।[2]इंसानियत का धर्म
आज प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। मानव कल्याण की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। भाषा, संस्कृति, पहनावे भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन विश्व के कल्याण का मार्ग एक ही है। मनुष्य को नफरत का मार्ग छोड़कर प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए। शांति के महत्व को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 1982 में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया कि हर 21 सितम्बर को 'विश्व शांति दिवस' मनाया जाएगा। इस सदी में विश्व में फैली अशांति और हिंसा को देखते हुए हाल के सालों में शांति कायम करना मुश्किल ही लगता है, किंतु उम्मीद पर ही दुनिया कायम है और यही उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही वह दिन आएगा, जब हर तरफ शांति ही शांति होगी।विश्व शांति दिवस
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लेख ♯ (प्रतीक्षित)
विश्व शांति दिवस
| |
विवरण | 'विश्व शांति दिवस' या 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' पूरी पृथ्वी पर शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 21 सितम्बर को मनाया जाता है। |
तिथि | 21 सितम्बर |
शुरुआत | 1982 |
विशेष | शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है। |
संबंधित लेख | अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस, पण्डित जवाहरलाल नेहरू |
अन्य जानकारी | संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तीन दशक पहले यह दिन सभी देशों और उनके निवासियों में शांतिपूर्ण विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित किया था। |
इतिहास
वर्ष 1982 से शुरू होकर 2001 तक सितम्बर महीने का तीसरा मंगलवार 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' या 'विश्व शांति दिवस' के लिए चुना जाता था, लेकिन वर्ष 2002 से इसके लिए 21 सितम्बर का दिन घोषित कर दिया गया। वर्ष 2012 के 'विश्व शांति दिवस' की थीम थी- "धारणीय भविष्य के लिए धारणीय शांति"।[1]उद्देश्य
सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना आज संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही यूएन का जन्म हुआ है। संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में अमन की अहमियत का प्रचार-प्रसार करना बेहद जरूरी और प्रासंगिक हो गया है। इसलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ, उसकी तमाम संस्थाएँ, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी और राष्ट्रीय सरकारें प्रतिवर्ष 21 सितम्बर को 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' का आयोजन करती हैं। शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तीन दशक पहले यह दिन सभी देशों और उनके निवासियों में शांतिपूर्ण विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित किया था।भारत और विश्व शांति
पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने विश्व में शांति और अमन स्थापित करने के लिए पाँच मूल मंत्र दिए थे, इन्हें 'पंचशील के सिद्धांत' भी कहा जाता है। यह पंचसूत्र, जिसे 'पंचशील' भी कहते हैं, मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के पाँच आधारभूत सिद्धांत हैं।[1] इसके अंतर्गत निम्नलिखित पाँच सिद्धांत निहित हैं-- एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
- एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही न करना।
- एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना।
- समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।
- सफ़ेद कबूतर उड़ाना
लेकर चलें हम पैगाम भाईचारे का,
ताकि व्यर्थ खून न बहे किसी वतन के रखवाले का।
वर्तमान परिवेश
आज कई लोगों का मानना है कि विश्व शांति को सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवादी आर्थिक और राजनीतिक चाल से है। विकसित देश युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं, ताकि उनके सैन्य साजो-समान बिक सकें। यह एक ऐसा कड़वा सच है, जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता। आज सैन्य साजो-सामान उद्योग विश्व में बड़े उद्योग के तौर पर उभरा है। आतंकवाद को अलग-अलग स्तर पर फैलाकर विकसित देश इससे निपटने के हथियार बेचते हैं और इसके जरिये अकूत संपत्ति जमा करते हैं। हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान, ईरान और इराक जैसे देशों में हुए युद्धों को विशेषज्ञ हथियार माफियाओं के लिए एक फायदे का मेला मानते हैं। उनके अनुसार दुनिया में भय और आतंक का माहौल खड़ा करके ही सैन्य सामान बेचने वाले देश अपनी चांदी कर रहे हैं।[2]इंसानियत का धर्म
आज प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। मानव कल्याण की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। भाषा, संस्कृति, पहनावे भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन विश्व के कल्याण का मार्ग एक ही है। मनुष्य को नफरत का मार्ग छोड़कर प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए। शांति के महत्व को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 1982 में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया कि हर 21 सितम्बर को 'विश्व शांति दिवस' मनाया जाएगा। इस सदी में विश्व में फैली अशांति और हिंसा को देखते हुए हाल के सालों में शांति कायम करना मुश्किल ही लगता है, किंतु उम्मीद पर ही दुनिया कायम है और यही उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही वह दिन आएगा, जब हर तरफ शांति ही शांति होगी।
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