विश्व शांति दिवस
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विश्व शांति दिवस
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विवरण | 'विश्व शांति दिवस' या 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' पूरी पृथ्वी पर शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 21 सितम्बर को मनाया जाता है। |
तिथि | 21 सितम्बर |
शुरुआत | 1982 |
विशेष | शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है। |
संबंधित लेख | अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस, पण्डित जवाहरलाल नेहरू |
अन्य जानकारी | संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तीन दशक पहले यह दिन सभी देशों और उनके निवासियों में शांतिपूर्ण विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित किया था। |
इतिहास
वर्ष 1982 से शुरू होकर 2001 तक सितम्बर महीने का तीसरा मंगलवार 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' या 'विश्व शांति दिवस' के लिए चुना जाता था, लेकिन वर्ष 2002 से इसके लिए 21 सितम्बर का दिन घोषित कर दिया गया। वर्ष 2012 के 'विश्व शांति दिवस' की थीम थी- "धारणीय भविष्य के लिए धारणीय शांति"।[1]उद्देश्य
सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना आज संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही यूएन का जन्म हुआ है। संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में अमन की अहमियत का प्रचार-प्रसार करना बेहद जरूरी और प्रासंगिक हो गया है। इसलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ, उसकी तमाम संस्थाएँ, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी और राष्ट्रीय सरकारें प्रतिवर्ष 21 सितम्बर को 'अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस' का आयोजन करती हैं। शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तीन दशक पहले यह दिन सभी देशों और उनके निवासियों में शांतिपूर्ण विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित किया था।भारत और विश्व शांति
पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने विश्व में शांति और अमन स्थापित करने के लिए पाँच मूल मंत्र दिए थे, इन्हें 'पंचशील के सिद्धांत' भी कहा जाता है। यह पंचसूत्र, जिसे 'पंचशील' भी कहते हैं, मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के पाँच आधारभूत सिद्धांत हैं।[1] इसके अंतर्गत निम्नलिखित पाँच सिद्धांत निहित हैं-- एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
- एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही न करना।
- एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना।
- समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।
- सफ़ेद कबूतर उड़ाना
लेकर चलें हम पैगाम भाईचारे का,
ताकि व्यर्थ खून न बहे किसी वतन के रखवाले का।
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