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03 अक्तूबर 2013

यहीं पहुंच कर पांडवों के सिर से उतरा था अपनों की हत्या का पाप


कोटा. राजस्थान की धरती पर अनेक सांस्कृतिक रंग रह पग पर नजर आते हैं। वीर सपूतों की इस धरती पर धर्म और आध्यात्म के भी कई रंग दिखाई देते हैं। कहीं बुलट वाले बाबा की पूजा होती है तो कहीं तलवारों के साये में मां की आरती की जाती है तो एक मंदिर ऐसा भी है जिसने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।। धर्म-यात्रा सीरीज में आज हम एक एक ऐसे स्थान के बारे में जहां पर कृष्ण के एक वरदान के बाद पांडव मोक्ष के लिए आए थे। इस चमत्कारी कुंड में गल गई थी भीम की गदा।
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, लेकिन जीत के बाद भी पांडव अपने पूर्वजों की हत्या के पाप से चिंतित थे। श्री कृष्ण ने उनका दर्द देख उन्हें बताया कि जिस तीर्थ स्थल के तालाब में तुम्हारे हथियार पानी में गल जायेंगे वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पांण्ड़व लोहार्गल आये तथा जैसे ही उन्होंने यहां के सूर्य कुंड़ में स्नान किया उनके सारे हथियार गल गये। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ स्थान घोषित किया। फिर शिव जी की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की।
राजस्थान के झुंझुनूं जिले से 70 कि. मी. दूर आड़ावल पर्वत की घाटी में उदयपुरवाटी नाम से एक कस्बा स्थित है। इस कस्बे से करीब दस कि.मी. की दूरी पर स्थित है लोहार्गल। जहां पर पांडवों का मनोरथ पूर्ण हुआ था। लोहार्गल का अर्थ होता है ऐसा स्थान जहां लोहा गल जाए। पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र मिलता है। झुंझुनू जिले में अरावली पर्वत की शाखाये उदयपुरवाटी तहसील से प्रवेश कर खेतडी, सिंघाना तक निकलती है, जिसकी सबसे उंची चोटी 1050 मीटर लोहार्गल में है।
लोहार्गल का इतिहास पांडवों के कुल हत्या के पाप से मोक्ष प्राप्त करने तक नहीं ही नहीं, बल्कि ये जगह परशुराम द्वारा किए गए पश्चाताप की भी गवाह है। क्रोध में आकर परशुराम ने क्षत्रियों का संहार कर दिया था। इसके बाद विष्णु के छठें अवतार परशुराम को क्रोध शांत होने पर अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने इसी स्थान पर अपने किए का पश्चाताप किया था।

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