जगदलपुर। बेल के कांटों के झूले पर शुक्रवार को 12 साल की विशाखा झूलेगी। वह काछन देवी मानी जाएगी। पूरे विश्व में विख्यात बस्तर दशहरा की एक अहम रस्म आगे बढ़ेगी। उसकी पूजा होगी। देवी हमेशा मिरगान जाति की ही बनती है। माना जाता है कि इससे दशहरे का पर्व निर्विघ्न रुप से संपन्न होगा और बस्तर पर कोई संकट न आएगा। कांटों में बैठने से जो पीड़ा होती है, वह संकटों का प्रतिरुप माना जाता है जिसे देवी हर लेती हैं। बस्तर का दशहरा उत्सव 70 दिनों से ज्यादा चलता है।
600 साल पुरानी परंपरा है। सातवीं में पढऩे वाली बच्ची विशाखा आज इस परंपरा को निभाएगी। उसे देवी के रूप में सजाया, संवारा जाएगा। नाच, गाने, संगीत के साथ अनुष्ठान होगा। शाम चार बजे काछन की गुड़ी मंदिर में पूजा होगी। मेले जैसा माहौल होगा। बस्तर के राज परिवार के प्रतिनिधि अपने मांझी, चालकी, नाइक आदि के साथ यहां पहुंचेंगे, मन्नत मांगेंगे। विशाखा से पहले उसकी मां और नानी भी देवी बन चुकी हैं।
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