नई दिल्ली. इक्का-दुक्का मौके छोड़ दिए जाएं तो अमूमन दक्षिण
भारत कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां तक कि 1977 और 1989 में जब पूरे देश में
कांग्रेस विरोधी हवा थी तब भी वहां पार्टी पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। यही
वजह थी कि 1977 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली में राजनारायण के हाथों हारने
के बाद इंदिरा गांधी कर्नाटक के चिकमंगलूर से जीत कर संसद पहुंची थीं।
पार्टी का लगभग ऐसा ही वर्चस्व उत्तर प्रदेश और बिहार में भी था।
1984 में तो उसके कब्जे में यूपी की 85 में से 83 और बिहार की 54 में
से 48 सीटें थीं पर इसके बाद मंदिर-मंडल में उलझ कर कांग्रेस इन राज्यों
में लगभग खत्म हो गई। क्या उसकी यही स्थिति दक्षिण भारत में भी होने वाली
है? जानने के लिए भास्कर ने हाल ही में हुए कई चुनाव सर्वेक्षणों का
विश्लेषण किया। जो बता रहे हैं कि कांग्रेस 2014 में दक्षिण भारत की कुल
129 में से अधिकतम 35 सीटें ही जीत पाएगी। इनमें आंध्र प्रदेश की 42,
तमिलनाडु की 39, कर्नाटक की 28 और केरल की 20 सीटें शामिल हैं। इन सभी
सीटों में से सिर्फ 35 पर ही कांग्रेस का दावा मजबूत है, जबकि 94 सीटों पर
मुकाबला सबके लिए खुला है।
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