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17 सितंबर 2013

वह फूल सी निखरी और सुगंध सी बिखरी थी ,

वह फूल सी निखरी और सुगंध सी बिखरी थी ,
यह दायरे थे प्यार के या किसी बहार के
समेटना की कोशिश में मैं यूँ ही बिखर गया
समेट लोगे तुम उसे तो चहक उठूँगा मैं
सूँघ लेना स्नेह से महक उठूँगा मैं
ख्वाब की तरह खो तो जाऊंगा नहीं
सो कर उठोगे जब सुबह और खिड़की खोलोगे
याद यूँ ही आयेगी ...लोग कह रहे होंगे
वह फूल सी निखरी और सुगंध सी बिखरी थी ." ----- राजीव चतुर्वेदी

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