कोटा. कोटा की शाही ‘पाग’ (पगड़ी) जिसे पूर्व महाराव
उम्मेदसिंह द्वितीय पहना करते थे, उसे अब हम-आप भी पहन सकते हैं। आमजन में
कोटा वस्त्र शैली को लोकप्रिय बनाने के लिए इसी महीने राव माधोसिंह
म्यूजियम ट्रस्ट की बैठक में निर्णय लिया जाएगा। यह पाग मेवाड़ी, मारवाड़ी,
जयपुरी एवं बीकानेरी शैली से बिल्कुल अलग है।
पूर्व महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय (1889-1940) के समय से चली आ रही इस
विशेष ऐतिहासिक पाग को आज भी पूर्व राजपरिवार के कार्यक्रमों एवं आयोजनों
में पहना जाता है। इसे मर्यादा एवं परंपरा का प्रतीक माना जाता है। यह जल्द
ही म्यूजियम में बिक्री के लिए उपलब्ध करा दिया जाएगा। आमजन तक इसे
पहुंचाने के लिए ट्रस्ट द्वारा पिछले एक साल से प्रयास किए जा रहे हैं।
नंगे सिर रहना वर्जित था
इतिहासविद् फिरोज अहमद ने बताया कि धार्मिक उत्सवों पर इसे पहनने का
रिवाज रहा है। नंगे सिर रहना अच्छा नहीं माना जाता था। सेठ साहूकारों से
लेकर सभी लोग इसे बांधते थे। कपड़ा भले ही पाग का अलग हो, लेकिन इसे पहनने
का अंदाज इकसार था।
रंग बदल जाते हैं
धार्मिक उत्सवों एवं शुभ कार्यो पर केसरिया, कुसुम रंग (मजेंडा कलर)
की पाग पहनी जाती थी। वहीं शोक में सफेद व हरे रंग की पाग का प्रचलन था।
18.28 मीटर की है पाग
कोटा शाही पाग 18.28 मीटर की है। यह मलमल, कॉटन और कोटा डोरिया से
निर्मित है। इसकी चौड़ाई 6 से 8 इंच है। इस पाग में आगे का भाग तिकोना होता
है।
‘कोटा की शाही पाग को आमजन तक पहुंचाने के लिए पिछले एक साल से योजना
चल रही है। राव माधोसिंह म्यूजियम ट्रस्ट गढ़ पैलेस की होने वाली बैठक में
इसका निर्णय लिया जाएगा।
पं. आशुतोष दाधीच, निरीक्षक राव माधोसिंह म्यूजियम ट्रस्ट
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