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05 जून 2013

दोस्तों फ़िल्मी कहानी में जीतने वाले सिंघम की कहानी कोटा की हकीक़त की दुनिया में उलट हो गयी है और यहाँ कोटा ग्रामीण के सिमलिया थाने में लगी एक महिला थानाधिकारी सिंघम यानी आपराधिक षड्यंत्रों की इस लड़ाई को प्राथमिक स्तर पर हार गयी लगती है

दोस्तों फ़िल्मी कहानी में जीतने वाले सिंघम की कहानी कोटा की हकीक़त की दुनिया में उलट हो गयी है और यहाँ कोटा ग्रामीण के सिमलिया थाने में लगी एक महिला थानाधिकारी सिंघम यानी आपराधिक षड्यंत्रों की इस लड़ाई को प्राथमिक स्तर पर हार  गयी लगती है .कोटा ग्रामीण क्षेत्र के सिमलिया थाने में तेनात चन्द्रज्योति शर्मा ने जब शराब ठेकेदारों .सटोरियों ..जुआरियों को सबक सिखाया ..डकेती के आरोपियों को दिन रात एक कर गिरफ्तार किया और एक प्रभावशाली डकेत की तलाश शुरू की ..एक बलात्कार के आरोपी पर गिरफ्तारी का दबाव बनाया और शराब के अवेध कारोबारियों को जेल भिवाया ..शराब के ठेके वक्त पर बंद करने के लियें पाबंदी लगाई तो सिमलिया के कुछ लोग बोखला गए ...इतना ही नहीं पूर्व में वरिष्ठ पुलिस अधिकारीयों के मर्जी के बगेर नियुक्ति प्राप्त करने वाली इस महिला अधिकारी का पक्ष जिस मंत्री ने लिया था उस मंत्री ने कोटा आई जी और पुलिस अधीक्षक की सत्यापित शिकायत कर रखी है बस कुछ इस मिले जुले कारणों से इस महिला सिंघम पुलिस अधिकारी को षड्यंत्रों का शिकार होना पढ़ा .पहले भ्रष्टाचार निरोधक विभाग को झूंठी सुचना देकर ट्रेप करवाने की कोशिश की गयी इनके ड्राइवर सोहराब को जबरन रिश्वत देने की पेशकश की गयी टेलीफोन टेपिंग के षड्यंत्र के तहत इस महिला अधिकारी को भी एक शराब माफिया ने माफीनामे के साथ रिश्वत उपहार की पेशकश की लेकिन हर बार षडयंत्रकारियों ने मुंह की खाई ..इसी बीच सिमलिया थाना इलाके में डकेती काण्ड हो जाने से जब इस महिला अधिकारी ने डकेतों को गिरफ्तार कर लूट का सामान बरामद किया और एक आरोपी और नामज़द हुआ तो उसने खुद को बचाने के लियें खेल शुरू किया .......अचानक एक शख्स जो शराबी और स्मेक्ची है जिसे पुलिस ने शांति भंग में गिरफ्तार किया था वोह पुलिस अधिकारीयों के पास जाता है और कहता है के में तो गिरफ्तारी के बाद सिमलिया थाने से फरार हो गया था ....मुझे तो अदालत में पेश ही नहीं किया गया मेरी जगह किसी फर्जी आदमी को पेश कर इस बात को थाने वालों ने छुपाई है जिस शिकायत करता की पुलिस हिरासत से फरार होने की स्वीकारोक्ति थी उसे पुलिस अधिकारीयों ने गिरफ्तार कर मुकदमा दर्ज नहीं करवाया अपने कर्तव्यों की पालना नहीं की ..आनन् फानन में महिला थानाधिकारी सहित चार सिपाही लाइन हाज़िर किये जाँच शुरू हुई ..फरार शिकायत करता राजेन्द्र की माँ भाई उसकी बात को झूंठी करार देते है उसके अपहरण का आरोप लगते है और सांगोद के उपखंड मजिस्ट्रेट इस मामले की जांच करते है उनकी जाँच में स्पष्ट आता है के राजेन्द्र ही अदालत में पेश हुआ था और वोह शराब माफियाओं के कहने से झूंठ बोलकर फरेब कर रहा है वोह अभी भी शराब माफियाओं के कब्जे में है .......मंत्री भरत सिंह जो राजस्थान सरकार में ईमानदारी की एकमात्र मिसाल है वोह इस रिपोर्ट को पढ़ते है और दो दिन पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के परिपत्र जिसमे अधिकारीयों को जनप्रतिनिधियों के सम्मान की हिदायत दी गयी है उसका उलंग्घन कर जन प्रतिनिधियों के अपमान करने वाले पुलिस अधीक्षक ग्रामीण के कार्यालय में जाते है खुद सारी कुर्सियां हटा कर पुलिस अधीक्षक को अहसास दिलाते है के जब आप जनप्रतिनिधियों को बेठने नहीं देते कुर्सियां हटा देते हो तो फिर में भी खड़ा ही रहूँगा आप तो बढे अधिकारी है .दुसरे अधिकारीयों को वोह बाहर करते है और पुलिस अधीक्षक को ब्पावर के थाने की एक गम्भीर शिकायत जो उन्हें जन सुनवाई के दोरान उनके खिलाफ चुनाव लड़े भाजपा प्रत्याक्षी द्वारादी गयी शिकायत देते है और कहते है इसकी जाँच केसे करेंगे क्या इसमें भी जाँच होने तक थानाधिकारी और स्टाफ को लाइन हाज़िर करेंगे .पुलिस अधीक्षक आवाक से स्तब्ध खड़े रहते है फिर अचानक नई योजना बनती है .एक शख्स नारायण पुलिस के पास आता है और वोह कहता है उसे भी गिरफ्तार किया था लेकिन उससे राजेन्द्र बन कर साइन करने के लियें कहा फिर उसे छोड़ा गया .इस मामले में भी दुसरे व्यक्ति के नाम से साइन करने वाले व्यक्ति को प्रतिरूपण के मामले में ग्रामीण कोटा पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया उसके बयां लिए मिडिया में खबर दी और छोड़ दिया ..  नारायण की माँ और परिवार वाले पुलिस के पास जाकर कहते है नारायण प्रभाव में आकर झूंठ बोल रहा है इसे बहकाया गया है लेकिन पुलिस नहीं मानती .कुल मिलाकर जांच पर जाँच और जाँच पर सवाल उठ रहे है ....खुद अपना अपराध स्वीकार करने वाले पुलिस हिरासत से भागने वाले ...पुलिस हिरासत में अपना नाम छुपा कर दुसरे के नाम से हस्ताक्षर करने वाले के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं कोई कार्यवाही नहीं ..इधर निष्पक्ष जाँच के लियें किसी दुसरे अधिकारी से जाँच नहीं करवाई गयी तो जाँच और शिकायत संदेह के घेरे में आ जाती है सच क्या है यह तो भगवान ही जाने लेकिन ग्रामीणों का कहना है के जब राजेन्द्र की माँ और नारायण के परिजन उनके झूंठ बोलने की बात कह रहे है ...इन दोनों को मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार नहीं किया गया है .....हस्ताक्षर मिलान के लिए विशेषग्य रिपोर्ट एफ एस एल से स्वतंत्र रूप से जांच नहीं करवाई गयी है एक तरफ तो उप अधीक्षक कोटा ग्रामीण उमा शर्मा की रिपोर्ट है जिसमे राजेन्द्र के फरार होने और नारायण के पेश होने की कहानी है दूसरी तरफ उपखंड मजिस्ट्रेट की न्यायिक जाँच रिपोर्ट है जिसमे राजेन्द्र को झुन्ठा करार दिया गया है ऐसे में यह तो तय है के किसी भी रिपोर्ट के सत्यापन के लिए तीसरी स्वतंत्र जाँच होना जरूरी है अब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ऐसे में सरकार के एक मात्र ईमानदार मंत्री भरत सिंह के इलाके का मामला होने से इसकी सारी जाँच मुख्यमंत्री कार्यालय के किसी अधिकारी से उनके नियंत्रण में करवाए और दोनों शिकायत कर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाएं ..निष्पक्ष जांच में अगर फर्जी झूंठी शिकायत का षड्यंत्र हो तो इसमें शामिल सभी लोगों को नामज़द कर गिरफ्तार करवाए और अधिकारी इस षड्यंत्र में शामिल हो तो उन्हें सबक सिखाये आर महिला पुलिस अधिकारी और पुलिस कर्मी दोषी है तो उन्हें भी दंडित किया जाए लेकिन निष्पक्ष स्वतंत्र तीसरे पक्षकार से जाँच करवाकर ही ऐसा निर्णय सम्भव है अब देखते है के फ़िल्मी दुनिया में षड्यंत्रों से आखिर में जीतने वाला सिंग्हम पुलिस का किरदार आखिर में हारता है या अफिर फ़िल्मी कहानी की तरह से फिर जीतकर आता है ...........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 

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