दो दिन बाद अचानक उनकी सांसें थम गईं और देखते ही देखते मेरा सबकुछ आंखों के सामने से चला गया। एक तरफ पति का शव था और दूसरी ओर हमें नीचे उतारा जा रहा था। मैं उनका शव साथ लाना चाहती थी, पर पुलिस व सेना वालों ने कहा कि ये संभव नहीं है। पहले जीवित लोगों को निकाला जाएगा। मजबूरन मुझे उनका हाथ छोडऩा पड़ा।
महावीर नगर विस्तार योजना निवासी 60 वर्षीय आशा सैनी यह कहते-कहते बिलख पड़ीं। वे अपने पति 65 वर्षीय गुलाबचंद सैनी के साथ चार धाम गई थीं। साथ में 42 लोग थे। आपदा आने पर सभी भैरवघाट पहाड़ी पर चले गए, लेकिन साथ में कुछ नहीं ले जा पाए।
लगातार बारिश के कारण उनके पति की तबियत बिगडऩे लगी। दवा छोड़कर उनके पास खाने को कुछ नहीं था। पति के शव के साथ मदद के लिए वह पहाड़ी पर भटकती रहीं। तीन दिन गुजरने के बाद सेना की मदद पहुंची लेकिन उनके पति शव कोटा नहीं आ सका। उत्तराखंड में आपदा पता चलने पर उनके बेटे महावीर भी उनकी तलाश में ऋषिकेश पहुंच गए। कई दिनों तक उनकी तलाश की तो केवल मां का पता चल सका। दोनों वहीं गंगाजी में पिता का पिंडदान कर दिया।
पैरों में छाले और जख्म
आशा देवी कई किलोमीटर तक पथरीली जमीन चलती रहीं। अगला कदम कहां पड़ रहा है उन्हें कुछ नहीं मालूम पड़ रहा था। आपदा उनके पीछे-पीछे चलती रही। पैरों में छाले और बड़े-बड़े जख्म हो गए। बुधवार दोपहर को कोटा पहुंचने पर उन्हें डॉक्टर को दिखाया गया। इस घटना का पता चलने पर भाजपा जिलाध्यक्ष श्याम शर्मा व भाजपा प्रवक्ता योगेन्द्र गुप्ता उनके घर पहुंचे और ढांढस बंधाया।
एक- एक चेहरे पर दिखा मौत का खौफ
मुसीबतों से बचते-बचाते 50 श्रद्धालुओं का दल बुधवार को जब करणीमाता मंदिर पहुंचा, तो लगा कि उन्हें नया जन्म मिल गया हो। एक-एक चेहरा बता रहा था कि मौत ने उनका कब तक और कितनी दूर तक पीछा किया। मंदिर आते ही सभी डबडबाई आंखों के साथ परिजनों से लिपट गए।
ड्राइवर की देरी ने बचा लिया
यह किस्मत ही थी कि ड्राइवर गंगोत्री से 90 किमी पहले नेताला के पास टायर चेक करने लगा। 20 मिनट लगे। ५ किमी आगे मनेरी में 500 मीटर सड़क बहकर भागीरथी में गिर गया है और 10 बसें भी उसमें समा गईं। ड्राइवर ने इतना समय न लगाया होता तो हादसे में हम भी नहीं बचते। - लोकेश दाधीच, छावनी चौराहा
प्रशासन ने तो हद कर दी
हम नेताला में ही फंस गए। वहां से 5 किमी आगे और ढाई किमी पीछे की सड़क के टुकड़े पानी में बह चुके थे। प्रशासन से संपर्क करते रहे लेकिन वे 5 दिनों तक सड़क ठीक करवाने का झूठा आश्वासन देते रहे। गणेशपुरा के लोगों ने हमें बचाया। - बनवारी दाधीच
चट्टान ऐसी कि रूह कांप जाए:
प्रशासन के मदद न करने पर स्थानीय लोगों ने हमें दूसरा रास्ता बताया। लेकिन 1 किमी खड़ी चढ़ाई देख मेरी रूह कांप उठी। सोचने लगा कि मैं तो जवान हूं, पर साथ आए बुजुर्ग कैसे चढ़ेंगे। लेकिन, हम किसी तरह सही-सलामत चढ़कर रास्ता पार कर गए।
- डॉ. भास्कर दाधीच
नेपालियों का हमेशा लगा रहा डर
जब हम खतरनाक रास्ते से गुजर रहे थे, तभी तीन महिलाएं गिरते-गिरते बचीं। ऊपर से जब ये सुना कि नेपाली लोग श्रद्धालुओं से लूट-खसोट कर रहे हैं तो घबराहट में पांव सही जगह नहीं पड़ रहे थे।
- गजेन्द्र राठौड़ (50) टूर आर्गेनाइजर
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