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07 मई 2013

भारत को चाहिए एक स्वतंत्र संवैधानिक पुलिस आयोग



सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोयला घोटाले में चल रही सीबीआई जांच में हस्तक्षेप करके सरकार ने समूची प्रक्रिया को झकझोर दिया है। उसके मुताबिक अदालत की पहली कोशिश सीबीआई को राजनीतिक दखलंदाजी से आजाद करने की होगी। हममें से कई लोग इस संभावना पर खुशी जाहिर करेंगे। लेकिन सीबीआई प्रमुख ने बिल्कुल सही कहा है कि यह संस्था सरकार का हिस्सा है, उससे स्वतंत्र नहीं है। इससे सरकार को सीबीआई का दुरुपयोग करने की क्षमता हासिल हो जाती है और इसका इस्तेमाल वह अपने दोस्तों को बचाने तथा दुश्मनों को तंग करने में किया करती है। इस स्थिति को बदलने के लिए अदालत के आदेशों से ज्यादा हमें ऐसे संवैधानिक बदलाव की जरूरत पड़ेगी, जिसके जरिये देश का समूचा पुलिस ढांचा बदला जा सके।

राजनीतिक खेल के मोहरे
राजनीतिक हस्तक्षेप सिर्फ कोयला घोटाले तक सीमित नहीं है। एक ढर्रे के तौर पर सरकारें पुलिस और अभियोजन कर्ताओं (प्रॉसिक्यूटर्स) का इस्तेमाल राजनीतिक खेल के मोहरों की तरह करती हैं। मायावती के खिलाफ चले ताज कॉरिडोर मामले को लीजिए। सरकार जब मायावती को खुश रखना चाहती है तो इस पर अपनी रफ्तार घटा देती है, और जब भी वह जोड़तोड़ का हिस्सा बनने से बेरुखी दिखाती हैं, सरकार इस मामले में सख्त तेवर अपनाने का संकेत देती है। लगभग यही हाल मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चल रहे आय से अधिक संपत्ति वाले मामले में जारी सीबीआई जांच का है। यह कोई संयोग नहीं है कि मायावती और मुलायम संसार की हर चीज पर असहमत हैं, लेकिन मनमोहन सिंह सरकार को (जो ममता बनर्जी की विदाई के बाद अपना संसदीय बहुमत खो चुकी है) बचाने पर दोनों के बीच पूर्ण सहमति है।

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