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05 मई 2013

"अचानक देश के अलग -अलग कोनो से बच्चियों से बलात्कार की ख़बरें आने लगीं

"अचानक देश के अलग -अलग कोनो से बच्चियों से बलात्कार की ख़बरें आने लगीं और अभियुक्त मटुकनाथ और जूली की रंग भूमि और भोजपुरी गानों की रागभूमि के बिहार से गिरफ्तार होने लगे ...किसी ने सोचा भी नहीं था कि कलिंग झेल चुका और क्रांति की चिंगारी सुलगाने वाला बिहार अब क्रमशः कामुक हो चुका है ...यह महज संयोग नहीं है ...यह कामोद्दीपन की क्रमशः कथा है ...भोजपुरी गीतों के नाम से जो अश्लीलता हवा में उछली गयी है अब वह वहाँ के जन चरित्र पर अपना असर दिखा रही है . यह भोजपुरी संस्कृति है क्या ? ...वही जो शादियों और उत्सवों में भोजपुरी लोक साहित्य में सुनाई देती है ? ...वही भोजपुरी संस्कृति जिसका चित्रण भोजपुरी गानों में मिलता है ...वही भोजपुरी गाने जिसमें पडौसी तो दूर की बात है हिन्दवी मर्यादा के सभी रिश्ते काम पिपाशा में नंगे खड़े कर दिए जाते हैं ...वही भोजपुरी कथित साहित्य /गाने जिनमें देवर भाभी के कपड़ों में हाथ डाल कर भाभी का दिल तलाशता है ...वही भोजपुरी गाने जिसमें ससुर खाना परोती बहू के ब्लाउज में झांकता है ...वही भोजपुरी गाने जिसमें जेठ अपनी बहू (छोटे भाई की पत्नी ) को अपनी रजाई में आमंत्रित करता है ... वही भोजपुरी गाने सभी सामाजिक वर्जनाओं को तार तार कर चुके हैं ...वही भोजपुरी गाने जो टेम्पू-ऑटो, बस या सड़क पर जब बजते हैं तो हमारी बेटियाँ /बहने /माँ शर्म से सहम जाती हैं ....वही भोजपुरी द्विआर्थी गाने /अश्लील /विद्रूप गाने जो भोजपुरी समाज को अपनी संस्कृति और मुझे विकृत लगते हैं ....अगर साहित्य सामाज का दर्पण है तो भोजपुरी साहित्य /गीतों को सुन कर मेरा यह विश्वास है कि भोजपुरी समाज में रिश्तों की कोई भी वर्जना नहीं ...वहां ससुर -बहू , बहू -जेठ , देवर -भाभी के बीच दैहिक रिश्ते समाज की अपेक्षा है ...भोजपुरी सामान्यतः अश्लील गीतों ने शालीन लोगों का सड़क पर चलना हराम कर दिया है ...भोजपुरी साहित्य के आईने में भोजपुरी समाज अपना विकृत ,विद्रूप ,वीभत्स, वर्जनाविहीन अश्लील चरित्र देख ले और आत्मवंचना करे ." ---- राजीव चतुर्वेदी

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