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18 मई 2013

मिल रही शिक्षा उदर पोषण का बस इक माध्यम है...

मिल रही शिक्षा उदर पोषण का बस इक माध्यम है...
कर्म से भी पूर्व फल की राह अब तकते नयन हैं...
"स्व" का ही पर्याय बन जीवन बिताया जा रहा है...
क्या प्रयोजन मातृभूमि के सजल चाहे नयन हैं...

गर्व है किस बात का परभूमि मे सम्मान भी हो...
पूजते हैं वो तुम्हे सस्ते मे उनको मिल रहे हो...
कल बढ़ाकर मूल्य अपना सत्य को भी जान लेना...
आज जो सम्मान के आभास मे ही खिल रहे हो...

सिंह के दांतो को गिनते थे कभी अब स्वान हैं हम...
दुम हिलाते भागते हैं पश्चिमी हड्डी के पीछे...
सभ्यता, परिवार, शिक्षा सब कहीं बिखरे पड़े हैं...
हम स्वयं आदर्श की खिल्ली उड़ाते, आँख मीचे...

जो खड़े सीमा पे अपने राष्ट्र के हित मर रहे हैं...
अब ज़रा आँखों पे पट्टी बाँध दो उनकी भी बढ़ के...
न दिखे उनको कहीं की सत्य का संसार क्या है...
पा रहे हैं क्या वो बंजर सी धरा हित प्राण तज के...

व्यवसाय की ही आड़ मे परतंत्रता बेची गयी थी...
आज क्यूँ हालात वो फिर से बनाए जा रहे हैं...
वीरता जनती कभी थी बांझ वो धरती हुई है...
अब नपुंसक भीरू ही बल से उगाए जा रहे हैं....

आज अपना राष्ट्र ही एक हाट बन कर रह गया है...
और हमारा ही यहाँ सम्मान बेचा जा रहा है...
मूढ़ सी कठपुतलियाँ क्यूँ बन गये हैं आज सारे...
खोल आँखें देख हिन्दुस्तान बेचा जा रहा है...

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