भारत सरकार भरतपुर राज्य की भारत विरोधी तथा पक्षपातपूर्ण नीतियों से खुश नहीं थी।
भरतपुर के महाराजा ने १५ अगस्त को स्वत्रता दिवस नहीं मनाया।
अपने राज्य के समाचार पत्रों को राष्ट्रीय नेताओं की आलोचना की अनुमति दी।
जानबुझकर मुसलमानों को सताने की नीति अपनाई।
राज्य में अस्र-शस्र निर्माण का कारखाना स्थापित किया। यह समझौते के
विरुद्ध था। ये अस्र-शस्र जाटों और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के
कार्यकर्त्ताओं बीच बाँटे गये तथा इस तरह राज्य ने साम्प्रदायिक गतिविधियों
में भाग लिया।
जाटों का पक्ष लेते हुए कई अन्य जातियों के प्रति अच्छा रवैया नहीं अपनाया।
सैनिको को नियंत्रित व अनुशासित करने में असफल रहे।
राजनैतिक अस्थिरता तथा तनाव के कारण भरतपुर के महाराजा को फरवरी १०, १९४८
को दिल्ली बुलाया गया तथा सुझाव दिया गया कि वे भरतपुर राज्य का प्रशासन
भारत सरकार के अधीन कर दे। १४ फरवरी १९४८ को रायबहादुर सूरजमल के नेतृत्व
में राज्य के मंत्रीमंडल ने त्यागपत्र दे दिया तथा एस. एन. सप्रू को भरतपुर
राज्य का प्रशासक नियुक्त किया गया। बाद में भरतपुर के शासक को आरोप मुक्त
कर दिया गया।
भारत सरकार भरतपुर राज्य की भारत विरोधी तथा पक्षपातपूर्ण नीतियों से खुश नहीं थी।
भरतपुर के महाराजा ने १५ अगस्त को स्वत्रता दिवस नहीं मनाया।
अपने राज्य के समाचार पत्रों को राष्ट्रीय नेताओं की आलोचना की अनुमति दी।
जानबुझकर मुसलमानों को सताने की नीति अपनाई।
राज्य में अस्र-शस्र निर्माण का कारखाना स्थापित किया। यह समझौते के विरुद्ध था। ये अस्र-शस्र जाटों और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्त्ताओं बीच बाँटे गये तथा इस तरह राज्य ने साम्प्रदायिक गतिविधियों में भाग लिया।
जाटों का पक्ष लेते हुए कई अन्य जातियों के प्रति अच्छा रवैया नहीं अपनाया।
सैनिको को नियंत्रित व अनुशासित करने में असफल रहे।
राजनैतिक अस्थिरता तथा तनाव के कारण भरतपुर के महाराजा को फरवरी १०, १९४८ को दिल्ली बुलाया गया तथा सुझाव दिया गया कि वे भरतपुर राज्य का प्रशासन भारत सरकार के अधीन कर दे। १४ फरवरी १९४८ को रायबहादुर सूरजमल के नेतृत्व में राज्य के मंत्रीमंडल ने त्यागपत्र दे दिया तथा एस. एन. सप्रू को भरतपुर राज्य का प्रशासक नियुक्त किया गया। बाद में भरतपुर के शासक को आरोप मुक्त कर दिया गया।
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