आपका-अख्तर खान

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03 मई 2013

उबरना है अगर इस बेक़ली से

उबरना है अगर इस बेक़ली से
तलाशे कुछ ख़ुशी इस जिंदगी से

दिखावे की है जिनकी गर्मजोशी
मिले उनसे बताओ क्या ख़ुशी से

चमक यूहीं नहीं चेहरे पे मेरे
मुसलसल जंग की है मुफ़लिसी से

लगी जो चोट दिल पे क्या बताये
ये दिल उकता गया है दोस्ती से

असर होगा तुम्हारे दिल पे इनका
कहे हैं शेर ये संजीदगी से

खुली जब आँख तो देखा है मैंने
उजाला लड़ रहा है तीरगी से

सिया ये ठोकरे खा कर है जाना
नहीं मिलता है कुछ भी सादगी से

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